जिन घरों में मैं अखबार डालता हूं उनमें से एक का लेटर बॉक्स उस दिन पूरी तरह से भरा हुआ था, इसलिए मैंने उस घर का दरवाजा खटखटाया।
उस घर के मालिक, बुजुर्ग व्यक्ति श्री पांडे जी ने धीरे से दरवाजा खोला।
मैंने पूछा, "सर, आपका लेटर बॉक्स इस तरह से भरा हुआ क्यों है?"
उन्होंने जवाब दिया, "ऐसा मैंने जानबूझकर किया है।" फिर वे मुस्कुराए और अपनी बात जारी रखते हुए मुझसे कहा "मैं चाहता हूं कि आप हर दिन मुझे अखबार दें। कृपया दरवाजा खटखटाएं या घंटी बजाएं और अखबार मुझे व्यक्तिगत रूप से सौंपें।"
मैंने हैरानी से प्रश्न किया, " आप कहते हैं तो मैं आपका दरवाजा ज़रूर खटखटाऊंगा, लेकिन यह हम दोनों के लिए असुविधा और समय की बर्बादी नहीं होगी ?"
उन्होंने कहा, "आपकी बात सही है... फिर भी मैं चाहता हूं कि आप ऐसा करें ,मैं आपको दरवाजा खटखटाने के शुल्क के रूप में हर महीने 500/- रुपये अतिरिक्त दूंगा।"
विनती भरी अभिव्यक्ति के साथ, उन्होंने कहा,"अगर कभी ऐसा दिन आए जब आप दरवाजा खटखटाएं और मेरी तरफ से कोई प्रतिक्रिया न मिले, तो कृपया पुलिस को फोन करें!"
उनकी बात सुनकर मैं चौंक-सा गया और पूछा, "क्यों सर?"
उन्होंने उत्तर दिया, "मेरी पत्नी का निधन हो गया है, मेरा बेटा विदेश में रहता है, और मैं यहाँ अकेला रहता हूँ । कौन जाने, मेरा समय कब आएगा?"
उस पल, मैंने उस बुज़ुर्ग आदमी की आंखों में छलक आए आंसुओं को देख कर अपने भीतर एक हलचल महसूस कीं ।
उन्होंने आगे कहा, "मैं अखबार नहीं पढ़ता,मैं दरवाजा खटखटाने या दरवाजे की घंटी बजने की आवाज सुनने के लिए अखबार लेता हूं। किसी परिचित चेहरे को देखने और कुछ परस्पर आदान-प्रदान करने के इरादे से!"
उन्होंने हाथ जोड़कर कहा, "नौजवान, कृपया मुझ पर एक एहसान करो! यह मेरे बेटे का विदेशी फोन नंबर है। अगर किसी दिन तुम दरवाजा खटखटाओ और मैं जवाब न दूं, तो कृपया मेरे बेटे को फोन करके इस बारे में सूचित कर देना।"
आज के समय की सबसे कड़वी सच्चाई यही है