आम का अचार
* बहु सास और जेठानी का सम्मान मायके वालों से पहले होता है*
आज समीर और स्नेहा की नयी फैक्ट्री का उद्घाटन था। देखते ही देखते एक साल में ही इतनी मेहनत करके दोनों पति-पत्नी ने अपनी फैक्ट्री भी खड़ी कर ली। सभी रिश्तेदार आए थे और समीर की खूब तारीफ किए जा रहे थे। भाई और भाभी प्रदीप और माया भी समीर के आगे पीछे ही घूम रहे थे। समीर की माँ ममता जी अपने बेटे की तारीफ सबके सामने किए जा रही थी और बार बार उसकी बलैया लिए जा रही थी। और सब लोग समीर को बधाइयां दिए जा रहे थे। ये अलग बात थी कि इस प्रगति में बहू का भी पूरा योगदान था लेकिन बहू को भला कौन पूछता है? इतने में पंडित जी ने समीर को आवाज देकर कहा,
" अरे यजमान पूजा का समय हो गया है। आकर पूजा पूर्ण करवाइए। वैसे भी पूजा मुहूर्त पर ही हो जाए तो ही अच्छा होता है" उनकी बात सुनकर समीर ने कहा,
"बस पंडित जी, पाँच मिनट और। स्नेहा अभी आती ही होगी" समीर की बात सुनकर ममता जी ने कहा, " अरे बेटा अगर स्नेहा को आने में देर है तो तेरे भैया भाभी पूजा में बैठ जाएंगे। पर पूजा तो मुहूर्त पर ही होनी चाहिए। पता नहीं स्नेहा कहाँ रह गई? कोई काम समय पर नहीं करती " ममता जी की बात सुनकर सुमीर मुस्कुरा कर बोला, " कोई बात नहीं मां। कितनी ही देर क्यों ना हो जाए। पूजा में तो स्नेहा ही मेरे साथ बैठेगी " उसकी बात सुनकर ममता जी ने कुछ नहीं कहा और मुँह बनाकर रिश्तेदारों में जाकर बैठ गई। और समीर यथावत स्नेहा का इंतजार करने लगा।
इंतजार करते करते उसे वो दिन याद हो आया जब स्नेहा उसकी पत्नी बनकर उसकी जिंदगी में आई थी। समीर ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं था क्योंकि शुरू से ही पढाई में कमजोर रहा था, इसलिए स्कूल के बाद तो उसने पढ़ाई ही छोड़ दी और छोटी-मोटी नौकरी करने लगा। जबकि समीर का भाई प्रदीप अच्छा खासा पढ़ा लिखा था और अच्छी नौकरी करता था। इस कारण से समीर की मां ममता जी का भी रुझान अपने बेटे प्रदीप की तरफ ही था। जाहिर सी बात है जिसके पति का घर में बोलबाला होता है, उसकी पत्नी का ही सम्मान सबसे ज्यादा होता है। यही हाल घर की बहुओं का था।
माया घर में रानी की तरह रहती थी, जबकि स्नेहा घर में सबके लिए एक नौकरानी भर थी। स्नेहा दिन भर घर का काम करती थी पर फिर भी उसके हिस्से सिर्फ ताने आते थे। समीर जो भी कमाता था, वो सब ममता जी के हाथ में लाकर रख देता था। स्नेहा को अगर कुछ चाहिए होता था तो ममता जी से मांगना पड़ता था। पर ममता जी से पहले तो माया ताने सुनाने लग जाती थी। यहां तक कि स्नेहा के खाने पीने में भी रोक टोक थी। माया और ममता जी स्नेहा के थाली पर नजर जरूर रखती थी कि वो अपनी थाली में क्या-क्या लेकर बैठी है। और फिर उसे खाते देखकर जरूर बोलती थी,
" हां हां, मुफ्त का माल है। उड़ा लो। बेचारा जेठ तो कोल्हू का बैल बना बैठा है। इन्हें क्या फर्क पड़ता है" स्नेहा का हाथ खाना खाते-खाते रुक जाता। ऐसा नहीं था कि समीर को दिख नहीं रहा था। एक दो बार ममता जी को उसने समझाने की कोशिश भी की थी, पर ममता जी ने उसे ही चुप करा दिया। पर उस दिन, बात कुछ भी नहीं थी। एक आम के आचार की इतनी औकात नहीं होती, जितनी उस दिन स्नेहा को दिखाई गई थी। दरअसल उस दिन रविवार था। घर में सभी सदस्य मौजूद थे इस कारण ममता जी ने स्नेहा को मटर पनीर, दाल मखनी, फ्राइड राइस, गुलाब जामुन और पूरी बनाने को कहा था। माया तो वैसे भी कोई काम नहीं करती थी। स्नेहा ने अकेली ही रसोई में सारा खाना तैयार किया। खाना तैयार करके वो गरमा गरम पूरी तल रही थी और साथ ही सब को खाना परोसती जा रही थी। सब लोगों ने खाना खाया लेकिन किसी ने ये ध्यान नहीं दिया कि स्नेहा के लिए सब्जी बची ही नहीं।
स्नेहा खाना खाने बैठी तो उसने देखा कि सब्जी और दाल के बर्तन खाली थे। अब वो खाना कैसे खाती? तभी उसे याद आया कि माया भाभी के मायके से एक दिन पहले ही आम का अचार आया है। तो वो रसोई में से अपने लिए थोड़ा सा आम का आचार निकाल कर ले आई। और उसी के साथ पूरी खाने लगी। उसे खाना खाते देखकर माया ने चिल्लाना शुरू कर दिया,
" किस से पूछ कर तुमने आम का अचार निकाला? ये मेरे मायके वालों ने मेरे लिए भेजा है। इतने ही आम के अचार का शौक है तो अपने मायके वालों को बोलो" माया की बात सुनकर स्नेहा की आंखों में आंसू आ गए, " भाभी सब्जी खत्म हो गई थी इसलिए मैंने आचार निकाला। मैंने तो अभी तक खाना भी नहीं खाया" " तो तेरे खाने की जिम्मेदारी हमारी है क्या? घर में रख रखा है। तुम्हारे खर्चे उठा रहे है तो तुम लोग तो सिर पर चढ़कर नाचने लगे हो" माया अभी भी चिल्ला रही थी। उसकी आवाज सुनकर घर में से बाकी सदस्य भी निकल कर बाहर आ गए। ममता जी ने भी माया का पक्ष लेते हुए कहा, " छोटी बहू शर्म नहीं आती तुझे। अरे एक आम के अचार की क्या औकात होती है? जो तूने उसकी चोरी की। पता नहीं घर में से क्या-क्या चुराती होगी" " बस माँ जी बहुत बोल दिया आपने" स्नेहा ने लगभग चिल्लाते हुए कहा। स्नेहा के चिल्लाने की आवाज से कुछ पल के लिए माहौल बिल्कुल शांत हो गया। फिर माया गरजते हुए बोली,
" तेरी इतनी हिम्मत कि तू हम पर चिल्ला रही है। हमारा खाती है और हमें ही सुना रही है" कहते हुए माया थप्पड़ मारने के लिए स्नेहा की तरफ बढ़ी तो उसने उसका हाथ पकड़कर मोड़ दिया। हाथ इतनी जोर से मोड़ा की माया की चीख निकल गई। यह देखकर ममता जी चिल्लाई, "समीर तेरी पत्नी को धक्के देकर बाहर निकाल। अब यह इस घर में रहने लायक नहीं"
" ठीक है मां, जैसी आपकी मर्जी" समीर का इतना कहते ही माया और ममता जी कुटिल मुस्कान के साथ मुस्कुराई। स्नेहा समीर की तरफ देखने लगी। समीर अंदर कमरे में गया। अपना और स्नेहा का सामान पैक कर कुछ देर बाद बाहर आया और स्नेह का हाथ पकड़ते हुए घर के बाहर निकलने लगा। इतने ममता जी बोली, " अरे तू कहां जा रहा है?" " बस मां, और कितना बर्दाश्त करवाओगी। पता है, इस घर में किसी को स्नेहा की रोटी बुरी नहीं लग रही थी, बल्कि मैं कम कमा रहा हूं वो बुरा लग रहा था। अगर आज मेरी कमाई भी अच्छी होती तो मेरी पत्नी को इतना कुछ सुनना नहीं पड़ता। सारा काम वो करती है पर ताने भी उसी के हिस्से में आते हैं। इसलिए अब आप भी चैन से रहो और हमें भी चैन से रहने दो। इसलिए मैं घर छोड़कर जा रहा हूं"
कहता हुआ समीर घर से निकल गया। किसी ने उसे रोकने की कोशिश भी नहीं की। उसके बाद दोनों किराए के कमरे में शिफ्ट हुए। उनकी वहां गृहस्थी बसाने में स्नेहा के माता-पिता ने पूरा योगदान दिया। कुछ दिनों बाद स्नेहा और समीर ने हिम्मत कर लोन लिया और एक छोटी सी टाई और डाई का काम शुरू किया। तब कपड़ों को रंगने का काम एक कमरे से शुरू होकर कब फैक्ट्री में तब्दील हो गया, दोनों को ही पता नहीं चला। पर दोनों की मेहनत आज नजर आ रही थी। इतने में बाहर कार आकर रुकी। उसमें से स्नेहा निकल कर बाहर आई। साथ में उसके मम्मी पापा भी थे। उन्हें देखकर समीर मुस्कुरा दिया और खुद आगे बढ़कर उन लोगों को अंदर लाने के लिए उनके पास चला गया। हमेशा शिफॉन की हल्की सी साड़ी पहनने वाली स्नेहा आज भारी चुनरी की साड़ी पहन कर आई थी। गहनों के नाम पर गले में बस एक हल्का सा मंगलसूत्र और कानों में छोटी बालिया थी। हाथों में लाख की चूड़ियां पहने हुए थी। पर फिर भी वह बहुत सुंदर लग रही थी। स्नेहा को इस तरह देखकर और समीर को उसके माता-पिता का इस तरह सम्मान करते देखकर माया ममता जी के पास आकर बोली,
" देखा माँजी आपने। अपने माता-पिता को तो अपने साथ लेकर आई है और आपको भेज दिया रिश्तेदारों के साथ। यही सम्मान है आपका" उसकी बात सुनकर ममता जी बोली, " हां देख रही हूं बहू, पर अब इतने लोगों के बीच में क्या बोलूं? कितना ही सम्मान कर लो। रहेगा तो मेरा स्थान ही ऊंचा। आखिर उसके पति को मैंने जना है" समीर और स्नेहा हवन में बैठ गए और महज आधे घंटे में पूजा संपन्न हो गई। हवन पूजन के बाद भोजन की व्यवस्था वही की गई थी। सभी रिश्तेदारों ने भोजन का भी लुफ्त उठाया। खुद समीर और स्नेहा ने उसके माता-पिता को बिठाकर अपने हाथों से खाना परोसा। उन्हें खिला पिलाकर उन्हें अपने एक दोस्त के साथ उसकी कार से घर पर रवाना कर दिया। पर जाने से पहले स्नेहा की मां के लिए एक सुंदर सी साड़ी और उसके पिता के लिए शॉल जरूर गिफ्ट की।
यह सब देखकर तो ममता जी और ज्यादा जल भून गई। कई रिश्तेदार तो वहां से चलते बने। अब फैक्ट्री में रह गए समीर, स्नेहा, ममता जी, माया और प्रदीप। माया ने मौका देखकर ताना मारा,
" लो भाई, देवरानी तो बनी महारानी। अपने माता पिता को ही पूछ रही थी। सास को तो पूछना ही भूल गई। सच कहा है किसी ने खुद के माता-पिता के लिए ही जी दुखता है, सास-ससुर को तो कौन पूछे?" इतने में ममता जी ने भी कहा, " बेटी के घर से कौन माता-पिता गिफ्ट लेकर जाता है। इतना भी नहीं पता तेरे माता-पिता को। मेरे बेटे का फालतू का खर्चा करवा दिया। अपने माता-पिता को देने के लिए तो तेरे पास सब कुछ है। यहाँ तेरी सास जेठानी खड़ी है, उन्हें तो अभी तक तूने कुछ भी नहीं दिया"
ये सुन कर स्नेहा मुस्कुराई और एक बैग लेकर आई। उसमें से एक साड़ी निकाल कर ममता जी को दी और एक साड़ी निकाल कर माया को पकड़ते हुए बोली, " ये रहा आप लोगों का गिफ्ट है" साड़ी को उलट-पुलट कर देखने के बाद माया बोली, " बस एक साड़ी? अपनी मां के बराबर ही हमको दे रही है। अरे हम तेरे ससुराल वाले हैं। हमारे लिए तो इससे ज्यादा बनता है" " जी बिल्कुल! आप के लिए से ज्यादा ही बनता है। मैं तो भूल ही गई थी। रुकिए जरा" कहकर स्नेहा अंदर गई और ऑफिस में से एक बड़ा सा बॉक्स निकाल कर लेकर आई, " यह आपके लिए जेठानी जी। ये आप रखिए"
स्नेहा ने माया को वो बॉक्स पकड़ाया। वो काफी वजनदार था। उससे रहा नहीं गया तो उसने उसी समय उस बॉक्स को खोला। उसमें एक मर्तबान रखा हुआ था। उसे निकाल कर देखा तो उसमें आम का अचार रखा था। माया और ममता जी हैरानी से स्नेहा और समीर की तरफ देख रहे थे। तब समीर ने कहा, " माँ हैरानी से क्या देख रही हो? यह तो वही आम का आचार है ना जिसने हमें हमारी औकात बताई थी। यह आपके लिए हम से ज्यादा कीमती था। इसलिए इससे महंगी चीज तो और क्या हो सकती थी? आखिर इसी के लिए तो आपने स्नेहा को चोर साबित किया था। तो आपको यही लौटा रहे हैं"
कहते हुए समीर ने हाथ जोड़ लिये। ममता जी कुछ कह ना पाई और माया और प्रदीप के साथ अपना सा मुंह लेकर वहां से रवाना हो गयी।
Comentarios