नाटक प्यार का || हम एक लड़की हैं और शिक्षित भी हमें यह पता है कि मर्दों से अपनी इज्जत कैसे बंचाई....
. * नाटक प्यार का * हम एक लड़की हैं और शिक्षित भी हमें यह पता है कि मर्दों से अपनी इज्जत कैसे बंचाई जाती है
मैं बालकनी से रिमझिम वर्षा के पड़ते हुए बूंदों को अपलक निहार रहा था ..
कभी कभी वर्षा की कुछ बूंदें जब मेरे बदन पर पड़ जाती .तो मेरा रोम रोम सिहर जाता.उन बूंदों के पड़ने से नहीं बल्कि उन बीते हुए लम्हों के कारण जो लम्हा हमको एक गहरा जख्म दे गया था और साथ छोड़ गया था
एक ऐसा दाग जो बरसात के मौसम में पानी के बूंदों को देखकर और हरा हो जाता है , उसमे से बीते हुए लम्हों की यादें मवाद की तरह रिसने लगती हैं मैं बरसात की बूंदों का टपकना देखते हुए अतीत में खो गया.......
उस शाम मैं ट्यूशन पढ़ाने कुछ देर से गया था जिसके कारण आने में भी देर गई ...हम अपने छात्र के घर से निकल कर तेज तेज कदमों से
अपने घर की ओर जाने लगें .....शाम का धुंधलका अपने पांव को पसारना सुरू कर दिया था....
ठंडी हवा चल रही थी बरसात का मौसम होने के कारण हमने आकाश के तरफ नजर उठाकर देखा आसमान पर काले बादल छाए हुए थे.......
बारिश कभी भी सुरू हो सकती थी ......हवा तेज तेज चलने लगा था और हल्की हल्की बारिश भी सुरू हो गई थी......मैं अपने चाल में और तेजी लाते हुए
अपने आस पास नजर डाला रास्ता एकदम सुनसान था और मेरी मंजील भी काफी दूर ..........
कभी कभी इक्का दुक्का गाड़ी सन से बगल से गुजर जाती थीं ....…. अचानक बारिश तेज हो गई.....मैं दौड़कर पास ही एक पीपल के पेड़ के ओट में खड़ा हो गया ........
बारिश काफी तेज हो चुकी थी .....मैं वहां से घर भी नहीं जा सकता था ......... मेरा घर अभी वहां से दूर था ....
अचानक बिजली कड़की और बिजली के कुछ पल के रोशनी में ही मुझे अपने से कुछ दूर पास ही झोंपड़ीनुमा टपरा दिखाई दिया .....
वह बस दस कदम की ही दूरी पर था ......मैं दौड़कर उस टपरे नुमा झोंपड़ी में घुस गया जिसे बस तीन तरफ से ही प्लास्टिक से घेरा गया था .....
ऊपर छत के नाम पर एक टीन रक्खा हुआ था ....जिसके नीचे मुश्किल से पांच या छह आदमी खड़े हो सकते थें .... मैं अन्दर घुस कर अपने बालों के पानी को झड़ता हुआ अपने चारों ओर का मुआयना करने लगा...
टपरे के बाहर एक स्कूटी खड़ी थी.....मेरे पास ही एक आदमी पैंट शर्ट पहने हुए खड़ा था ....जो...शायद बारिश के बौछार से बचने के लिए मेरी ओर खिसकता जा रहा था.....उसके बदन से गुलाब के खुशबू सी फूट रही थी.....
मैं उसकी ओर ध्यान ना देकर बाहर बारिश के तरफ देखने लगा .........बारिश और तेज होती जा रही थी .......
अचानक जोर से बिजली कड़की और आसमान में तेज गड़गड़ाहट की आवाज हुई........
वह शख्स जो अभी तक मेरे पास खड़ा था बिजली की गड़गड़ाहट सुनकर चीखते हुए हमसे कसकर चिपक गया था.......
हमने बिजली के रोशनी में उसके चेहरे को देखा ........वह एक लड़की थी .......और लड़की भी इतनी सुन्दर की उसको देखकर शायद स्वर्ग की परियां भी शर्मा जाएं .........
वह बहुत देर तक हमसे चिपकी रही ......और जब उसे होश आया तो सॉरी बोलती हुई हमसे अलग हो गई.........मैं उसके बदन के खुशबू में सारोबार् हो चुका था......
झोंपड़ी में अब पानी की बौछार आने लगी थी...... वह खिसक कर एक बार और हमारे पास आ गई.......हम दोनों बिल्कुल सट से गए थें ....
वह कांपती हुई आवाज में बोली .....
"आपको कहां जाना है "...... हमने उससे बताया कि बस पास ही यहां से एक किलोमीटर दूर मटियाला है वहीं हमारा क्वार्टर है और साथ ही हमने पूछ लिया कि आपको कहां तक जाना है ............?
वह सकुचाते हुए बोली.............
" हमें यहां से लगभग तीस किलोमीटर दूर लक्ष्मीनगर जाना है और हमारी स्कूटी खराब हो गई है.......समझ में नहीं आ रहा कि अब मैं क्या करूं ...?
" यहां से तो अब कोई बस भी नहीं है ".......मैं चुप रहा .....अब बारिश कुछ हल्की हो गई थी ।
मैने सोचा की जब तक बारिश हल्की है मैं दौड़कर क्वार्टर पहुंच जाऊंगा........
परन्तु फिर सोचा इस लड़की को सुनसान जगह पर अकेली छोड़कर जाना अच्छा नहीं होगा...........
मैं आहिस्ते से बोला अगर आप चाहें तो मेरे मुहल्ले तक चल सकती हैं वहां पर स्कूटी मेरे घर छोड़ दीजियेगा और आप किसी सवारी से निकल जाइएगा
......सुबह किसी मैकेनिक को लेकर आईएगा और स्कूटी ले जाईएगा............लड़की कुछ देर तक खामोश रही और फिर बोली........
" चलिए" हम दोनों स्कूटी लेकर वहां से चल पड़ें...........
जब हम दोनों झोपड़ी और हमारे क्वार्टर के बराबर पहुंचें तो बारिश फिर तेज हो चुकी थी और हम दोनों बुरी तरह भींग चुके थें.......अब वापस जाकर भी झोंपड़ी तक नहीं पहुंचा जा सकता था ..........
हम दोनों भींगते भींगते ही अपने एक कमरे के।क्वार्टर तक पहुंचें बाहर बाउंड्री के अंदर स्कूटी खड़ा करके हम दोनों दरवाजे तक आए ....
हमने जेब से चाबी निकाल कर ताला खोला और दोनों हड़बड़ा कर अन्दर घुस गए ............बारिश और तेज हो गई थी.... हमने उसके तरफ देखा ......वह पूरी तरह भींग चुकी थी और ठंड के कारण कांप रही थी......
हमने पास खूंटी से लटक रहा तौलिया उतारा और उसके तरफ बढ़ा दिया .........
अपना एक कुर्ता ,पायजामा उसको देते हुए बोला लीजिए ........और पास ही किचन के तरफ इसारा करता हुआ कहा .......
" उधर जाकर कपड़े बदल लीजिए " वह हंसते हुए बोली ......
" क्यों यहां बदलने से क्या होगा ....?
" क्या आप अपने ऊपर कंट्रोल नहीं रख पायेंगे " मैं चुप ही रहा ...वह तौलिए से अपना बाल सुखाते हुए बोली...." आप यहां अकेले रहते हैं..?
" आपकी शादी नहीं हुई " हम कुछ झिझकते हुए बोले .....नहीं हमारी शादी नहीं हुई है......मैं यहां रहकर पास के कालेज में ग्रेजुयेशन कंपलीट कर रहा हूं........
वह फिर हंसने लगी और हंसते हुए बोली .......
" आपका नाम क्या है .....और आप रहने वाले कहां के हैं " हम उसके बातों को सुनकर सोच रहे थें कि.......लड़की कितने स्वछंद विचारों की है आते ही हमसे घुलमिल गई......
हमने चौंकते हुए ...उसके प्रश्न का उत्तर दिया....." जी मेरा नाम प्रकाश है और मैं रायबरेली का रहने वाला हूं....और घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण .......यहां पर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर अपना खर्च मेंटेन करता हूं .....
आज भी हम ट्यूशन पढ़ाकर ही वापस आ रहे थें " मैं पास में पड़े लोवर और टीशर्ट उठाकर बदलने लगा.....और वह पास ही किचन में जाकर कपड़े बदलने लगी......
कुछ देर बाद हम दोनों अपने अपने कपड़े बदलकर बिस्तर पर पास पास ही बैठकर चाय की चुस्की ले रहे थें .....
मैं गौर से एक टक उसके सुन्दर चेहरे को देख रहा था....... और वह कुछ सोच रही थी........
बाहर बारिश और तेज हो गई थी .....वह भी हमारे तरफ देखने लगी वह शायद हमारे चेहरे के भावों को पढ़ना चाहती थी .........हम दोनों खामोश थें अचानक उसके लव थरथराएं और वह कहने लगी
" हमें भी आपही के जैसे एक जीवन साथी की जरूरत है.......जो जीवन से संघर्ष करना जानता हो "
हम अचानक उसके इस बात पर चौंक उठे और हम उससे पूछ बैठें......." क्यों .....? "
उसने कहा " हम आप ही के जैसे नौजवान से शादी करना चाहते हैं जो गरीब होते हुए भी शिक्षित हो क्योंकि हमारे पास दौलत की कमी नहीं है.......
हमारे पापा का बहुत बड़ा कारोबार है ...मगर पापा से मैं बोल चुकी हूं कि मैं एक गरीब लड़के से ही शादी करूंगी .....
हमारे पापा भी इस फैंसले से सहमत हैं........
.हमारा नाम रोजी है........ " क्या तुम हमसे शादी करोगे प्रकाश........?"
और वह हमारे बिल्कुल पास खिसक आई .....
मैं तो पहले से ही उसके सौंदर्य में खोया हुआ था...........
उसके खुले आमंत्रण को पाकर मैं बेकाबू हो गया ....
और उससे लिपटते हुए बोला " रोजी मैं इसे अपना सौभाग्य समझूंगा " वह भी हमसे कसकर लिपट गई......
हम दोनों लबों की प्यास एक दूसरे के लव से बुझा लेना चाहते थें .......
मेरे शरीर में मानों आग सी लग गई थी .......
मेरा हाथ उसके जिस्म पर बेतहाशा रेंग रहे थें......
और जब हम अपने हदों को पार करने लगें तो वह छिटक कर हमसे अलग हो गई.....और बोली.....
" नहीं प्रकाश शादी से पहले यह सब पाप है .......
मैं यह शरीर तुम्हें सुहागरात को ही सौंपना चाहती हूं..?
मैं भी अपने हरकतों पर शर्मिंदा था....उस रात ....
देर रात तक हम दोनों प्यार की बातें करते रहे थें ..
बाद में वह हमारे बिस्तर पर सो गई थी.....और हम नीचे फर्श पर एक चादर बिछाकर .......
फिर हमें नींद आ गई थी........
सुबह जब हमारी नींद खुली तो हमने जम्हाई लेते हुए बिस्तर के तरफ देखा वह वहां नहीं थी हमने दीवाल घड़ी के तरफ नजर डाला सुबह के साढ़े नौ बज रहे थें.......
मैं हड़बड़ा कर उठा की शायद वह बाथरूम में हो .....वह वहां भी नहीं थी..... मैं दरवाजे के तरफ देखा .....दरवाजा खुला हुआ था .....मैं बाहर आया तो कैंपस में स्कूटी भी नहीं थी......
मैं जल्दी जल्दी कमरे से निकल कर रोड के तरफ दौड़ा की शायद वह स्कूटी बनवाने के लिए पास ही मैकेनिक के वहां गई हो वहां जाने पर मैकेनिक से पता चला कि सुबह साढ़े छह बजे के लगभग एक लड़की वहां स्कूटी बनवाने आई थी
उसके कार्बोरेटर में कोई खराबी आ गई थी जिसे मैकेनिक ने ठीक कर दिया था और वह 15 मिनट बाद ही चली गई थी मैं लुटा पीटा सा क्वार्टर आया वहां मेरे पढ़ने वाले मेज पर एक कागज का टुकड़ा पेपरवेट से दबाकर रखा हुआ था..........
हमने झपटकर उसे उठाया और एक ही सांस में पढ़ने लगा......उसपर लिखा हुआ था.. प्रकाश , हम एक लड़की हैं और शिक्षित भी हमें यह पता है कि मर्दों से अपनी इज्जत कैसे बंचाई जाती है हम रात में फंस चुके थें और रात भर तुम्हारे घर में रहने के अलावा हमारे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था ......
चाहे मर्द जितना साधु क्यों न बने वह एक कमरे में अकेली लड़की को पा कर शैतान बन जाता है .....यही सब सोचकर हमें तुम्हारे साथ नाटक करना पड़ा....
हमको रात भर अपने घर में सुरक्षित रखने के लिए धन्यवाद......हो सके तो हमें माफ करना और कभी हमसे मिलने का प्रयास मत करना
..........एक अजनबी
मैं उस पत्र को पढ़कर अपना होश खो बैठा .....हमने एक ही रात में उसको अपने दिल की रानी बना बैठा था .....कितने बड़े बड़े सपने देख बैठा था मैं.....
अब उसका खत पढ़कर मेरे सारे सपने मेरे ही सामने रेत के महल की भांति भरभरा कर ढह चुके थें .....
मैं सोच रहा था कि उसने क्यों किया इतना बड़ा नाटक.......?
हमने उसको ढूंढने का बहुत प्रयास किया और आज भी निरन्तर उसे ढूढने का प्रयास कर ही रहा हूं......
सिर्फ उसे यह बताने के लिए कि रोजी हर मर्द एक जैसे नहीं हुआ करतें.......
बारिश थम चुकी थी.....
हमने आसमान के तरफ देखा सूरज बादलों से निकल कर मुस्करा रहा था........
मेरी आंखें नम हो चुकी थीं.....हमने अपने आंखों को पोंछा और सोचने लगा क्या हमारी तलाश कभी पूरी होगी.........?
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