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75किसी भी खाली खोज के साथ परिणाम मिले

  • वकील साहब

    गुस्से को नियंत्रित करने का एक सुंदर उदाहरण एक वकील ने सुनाया हुआ एक ह्यदयस्पर्शी किस्सा "मै अपने चेंबर में बैठा हुआ था, एक आदमी दनदनाता हुआ अन्दर घुसा हाथ में कागज़ो का बंडल, धूप में काला हुआ चेहरा, बढ़ी हुई दाढ़ी, सफेद कपड़े जिनमें पांयचों के पास मिट्टी लगी थी उसने कहा, "उसके पूरे फ्लैट पर स्टे लगाना है बताइए, क्या क्या कागज और चाहिए... क्या लगेगा खर्चा... " मैंने उन्हें बैठने का कहा, "रग्घू, पानी दे इधर" मैंने आवाज़ लगाई वो कुर्सी पर बैठे उनके सारे कागजात मैंने देखे उनसे सारी जानकारी ली आधा पौना घंटा गुजर गया "मै इन कागज़ो को देख लेता हूं आपकी केस पर विचार करेंगे आप ऐसा कीजिए, बाबा, शनिवार को मिलिए मुझसे" चार दिन बाद वो फिर से आए वैसे ही कपड़े बहुत डेस्परेट लग रहे थे अपने भाई पर गुस्सा थे बहुत मैंने उन्हें बैठने का कहा वो बैठे ऑफिस में अजीब सी खामोशी गूंज रही थी मैंने बात की शुरवात की " बाबा, मैंने आपके सारे पेपर्स देख लिए आप दोनों भाई, एक बहन मा बाप बचपन में ही गुजर गए तुम नौवीं पास। छोटा भाई इंजिनियर आपने कहा कि छोटे भाई की पढ़ाई के लिए आपने स्कूल छोड़ा लोगो के खेतों में दिहाड़ी पर काम किया कभी अंग भर कपड़ा और पेटभर खाना आपको मिला नहीं पर भाई के पढ़ाई के लिए पैसा कम नहीं होने दिया।" "एक बार खेलते खेलते भाई पर किसी बैल ने सींग घुसा दिए लहूलुहान हो गया आपका भाई फिर आप उसे कंधे पर उठा कर 5 किलोमीटर दूर अस्पताल लेे गए सही देखा जाए तो आपकी उम्र भी नहीं थी ये समझने की, पर भाई में जान बसी थी आपकी मा बाप के बाद मै ही इन का मा बाप… ये भावना थी आपके मन में" "फिर आपका भाई इंजीनियरिंग में अच्छे कॉलेज में एडमिशन ले पाया आपका दिल खुशी से भरा हुआ था फिर आपने मरे दम तक मेहनत की 80,000 की सालाना फीस भरने के लिए आपने रात दिन एक कर दिया बीवी के गहने गिरवी रख के, कभी साहूकार कार से पैसा ले कर आपने उसकी हर जरूरत पूरी की" "फिर अचानक उसे किडनी की तकलीफ शुरू हो गई दवाखाने हुए, देवभगवान हुए, डॉक्टर ने किडनी निकालने का कहा तुम ने अगले मिनट ने अपनी किडनी उसे दे दी कहा कल तुझे अफसर बनना है, नोकरी करनी है, कहा कहा घूमेगा बीमार शरीर लेे के। मुझे गाव में ही रहना है, एक किडनी भी बस है मुझे ये कह कर किडनी दे दी उसे।" "फिर भाई मास्टर्स के लिए हॉस्टल पर रहने गया लड्डू बने, देने जाओ, खेत में मकई खाने तयार हुई, भाई को देने जाओ, कोई तीज त्योहार हो, भाई को कपड़े करो घर से हॉस्टल 25 किलोमीटर तुम उसे डिब्बा देने साइकिल पर गए हाथ का निवाला पहले भाई को खिलाया तुमने।" "फिर वो मास्टर्स पास हुआ, तुमने गाव को खाना खिलाया फिर उसने शादी कर ली तुम सिर्फ समय पर वहा गए उसी के कॉलेज की लड़की जो दिखने में एकदम सुंदर थी भाई को नौकरी लगी, 3 साल पहले उसकी शादी हुई, अब तुम्हारा बोझ हल्का होने वाला था।" "पर किसी की नज़र लग गई आपके इस प्यार को शादी के बाद भाई ने आना बंद कर दिया। पूछा तो कहता है मैंने बीवी को वचन दिया है घर पैसा देता नहीं, पूछा तो कहता है कर्ज़ा सिर पे है पिछले साल शहर में फ्लैट खरीदा पैसे कहा से आए पूछा तो कहता है कर्ज लिया है मेंने मना किया तो कहता है भाई, तुझे कुछ नहीं मालूम, तू निरा गवार ही रह गया अब तुम्हारा भाई चाहता है गांव की आधी खेती बेच कर उसे पैसा दे दे" इतना कह के मै रुका रग्घू ने लाई चाय की प्याली मैंने मुंह से लगाई " तुम चाहते हो भाई ने जो मांगा वो उसे ना दे कर उसके ही फ्लैट पर स्टे लगाया जाए क्या यही चाहते हो तुम"... वो तुरंत बोला, "हां" मैंने कहा, " हम स्टे लेे सकते है भाई के प्रॉपर्टी में हिस्सा भी मांग सकते है पर…. तुमने उसके लिए जो खून पसीना एक किया है वो नहीं मिलेगा तुमने दी हुई किडनी वापस नहीं मिलेगी, तुमने उसके लिए जो ज़िन्दगी खर्च की है वो भी वापस नहीं मिलेगी मुझे लगता है इन सब चीजो के सामने उस फ्लैट की कीमत शुन्य है भाई की नीयत फिर गई, वो अपने रास्ते चला गया अब तुम भी उसी कृतघ्न सड़क पर मत जाना" "वो भिकारी निकला, तुम दिलदार थे। दिलदार ही रहो ….. तुम्हारा हाथ ऊपर था, ऊपर ही रखो कोर्ट कचेरी करने की बजाय बच्चो को पढ़ाओ लिखाओ पढ़ाई कर के तुम्हारा भाई बिगड़ गया; इस का मतलब बच्चे भी ऐसा करेंगे ये तो नहीं होता" वो मेरे मुंह को ताकने लगा" उठ के खड़ा हुआ, सब काग़ज़ात उठाए और आंखे पोछते हुए कहा, "चलता हूं वकील साहब" उसकी रूलाई फुट रही थी और वो मुझे वो दिख ना जाए ऐसी कोशिश कर रहा था इस बात को अरसा गुजर गया कल वो अचानक मेरे ऑफिस में आया कलमो में सफेदी झांक रही थी उसके। साथ में एक नौजवान था हाथ में थैली मैंने कहा, "बाबा, बैठो" उसने कहा, "बैठने नहीं आया वकील साहब, मिठाई खिलाने आया हूं ये मेरा बेटा, बैंगलोर रहता है, कल आया गांव अब तीन मंजिला मकान बना लिया है वहा थोड़ी थोड़ी कर के 10–12 एकड़ खेती खरीद ली अब" मै उसके चेहरे से टपकते हुए खुशी को महसूस कर रहा था "वकील साहब, आपने मुझे कहा, कोर्ट कचेरी के चक्कर में मत लगो गांव में सब लोग मुझे भाई के खिलाफ उकसा रहे थे मैंने उनकी नहीं, आपकी बात सुन ली मैंने अपने बच्चो को लाइन से लगाया और भाई के पीछे अपनी ज़िंदगी बरबाद नहीं होने दी कल भाई भी आ कर पाव छू के गया माफ कर दे मुझे ऐसा कह गया" मेरे हाथ का पेडा हाथ में ही रह गया मेरे आंसू टपक ही गए आखिर. .. . गुस्से को योग्य दिशा में मोड़ा जाए तो पछताने की जरूरत नहीं पड़े कभी बहुत ही अच्छा है पर कोई समझे और अमल करे तब सफल हो... मन...

  • परेशानियाँ दूर करने वाला पेड़

    एक महिला थी। रोज वह और उसके पति सुबह ही काम पर निकल जाते थे। दिन भर पति ऑफिस में अपना टारगेट पूरा करने की *‘डेडलाइन’* से जूझते हुए साथियों की होड़ का सामना करता था।_ _बॉस से कभी प्रशंसा तो मिली नहीं और तीखी- कटीली आलोचना चुपचाप सहता रहता था।_ _पत्नी सरला भी- एक प्रावेट कम्पनी में जॉब करती थी। वह अपने ऑफिस में दिनभर परेशान रहती थी।_ _ऐसी ही परेशानियों से जूझकर सरला लौटती है, खाना बनाती है,शाम को घर में प्रवेश करते ही बच्चों को, वे दोनों - नाकारा होने के लिए डाँटते थे।_ _पति और बच्चों की अलग-अलग फरमाइशें पूरी करते-करते बदहवास और चिड़चिड़ी हो जाती है।_ _घर और बाहर के सारे काम उसी की जिम्मेदारी हैं।_ _थक-हार कर वह अपने जीवन से निराश होने लगती है। उधर पति दिन पर दिन अशांत होता जा रहा है।बच्चे विद्रोही हो चले हैं।_ _एक दिन सरला के घर का नल खराब हो जाता है। उसने प्लम्बर को नल ठीक करने के लिए बुलाया। प्लम्बर ने आने में देर कर दी।_ _पूछने पर बताया: कि साइकिल में पंक्चर के कारण देर हो गई। घर से लाया खाना मिट्टी में गिर गया,ड्रिल मशीन खराब हो गई,जेब से पर्स गिर गया...।_ _इन सब का बोझ लिए वह नल ठीक करता रहा।_ _काम पूरा होने पर महिला को दया आ गई- और वह उसे गाड़ी से, उसके घर छोड़ने चली गई।_ _प्लंबर ने उसे बहुत ही आदर से-चाय पीने का आग्रह किया।_ _प्लम्बर के घर के बाहर एक पेड़ था। प्लम्बर ने पास जाकर उसके पत्तों को सहलाया,चूमा और अपना थैला उस पर टांग दिया।घर में प्रवेश करते ही उसका चेहरा खिल उठा। बच्चों को प्यार किया,मुस्कराती पत्नी को स्नेह भरी दृष्टि से देखा और चाय बनाने के लिए कहा।_ _सरला यह देखकर हैरान थी। बाहर आकर पूछने पर प्लंबर ने बताया - यह मेरा परेशानियाँ दूर करने वाला पेड़ है।_ _मैं सारी समस्याओं का बोझा, रातभर के लिए इस पर टाँग देता हूं। और घर में कदम रखने से पहले मुक्त हो जाता हूँ।_ _चिंताओं को अंदर नहीं ले जाता।सुबह जब थैला उतारता हूं- तो वह पिछले दिन से कहीं हलका होता है। काम पर कई परेशानियाँ आती हैं, पर एक बात पक्की है- मेरी पत्नी और बच्चे उनसे अलग ही रहें, यह मेरी कोशिश रहती है। इसीलिए इन समस्याओं को बाहर छोड़ आता हूं। प्रार्थना करता हूँ- कि भगवान मेरी मुश्किलें आसान कर दें। मेरे बच्चे मुझे बहुत प्यार करते हैं, पत्नी मुझे बहुत स्नेह देती है,तो भला मैं उन्हें परेशानियों में क्यों रखूँ।उसने राहत पाने के लिए कितना बड़ा दर्शन खोज निकाला था...!_ _यह घर-घर की हकीकत है।_ _गृहस्थ का घर एक तपोभूमि है।सहनशीलता और संयम खोकर कोई भी इसमें सुखी नहीं रह सकता। जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं, हमारी समस्याएं भी नहीं।_ _प्लंबर का वह *‘समाधान-वृक्ष’ एक प्रतीक है* क्यों न हम सब भी एक-एक वृक्ष ढूँढ़ लें, ताकि घर की दहलीज पार करने से पहले अपनी सारी चिंताएं बाहर ही टाँग आएँ। *_सदैव प्रसन्न रहिये।_* *_जो प्राप्त है वही पर्याप्त है...!!

  • रस्म

    #रस्म #एक_हाउसवाइफ_कहानी_की बर्तन गिरने की आवाज़ से शिखा की आँख खुल गयी। घडी देखी तो आठ बज रहे थे , वह हड़बड़ा कर उठी। “उफ़्फ़ ! मम्मी जी ने कहा था कल सुबह जल्दी उठना है , ””””रसोई”””” की रस्म करनी है, हलवा-पूरी बनाना है… और मैं हूँ कि सोती ही रह गयी। अब क्या होगा…! पता नहीं, मम्मी जी, डैडी जी क्या सोचेंगे, कहीं मम्मी जी गुस्सा न हो जाएँ। हे भगवान!” उसे रोना आ रहा था। ””””ससुराल”””” और ””””सास”””” नाम का हौवा उसे बुरी तरह डरा रहा था। कहा था दादी ने- ””””””””ससुराल है, ज़रा संभल कर रहना। किसी को कुछ कहने मौका न देना, नहीं तो सारी उम्र ताने सुनने पड़ेंगे। सुबह-सुबह उठ जाना, नहा-धोकर साड़ी पहनकर तैयार हो जाना, अपने सास-ससुर के पाँव छूकर उनसे आशीर्वाद लेना। कोई भी ऐसा काम न करना जिससे तुम्हें या तुम्हारे माँ-पापा को कोई उल्टा-सीधा बोले। ” शिखा के मन में एक के बाद एक दादी की बातें गूँजने लगीं थीं। किसी तरह वह भागा-दौड़ी करके तैयार हुई। ऊँची-नीची साड़ी बाँध कर वह बाहर निकल ही रही थी कि आईने में अपना चेहरा देखकर वापस भागी-न बिंदी, न सिन्दूर -आदत नहीं थी तो सब लगाना भूल गयी थी। ढूँढकर बिंदी का पत्ता निकाला। फिर सिन्दूरदानी ढूँढने लगी…. जब नहीं मिली तो लिपस्टिक से माथे पर हल्की सी लकीर खींचकर कमरे से बाहर आई। जिस हड़बड़ी में शिखा कमरे से बाहर आई थी, वह उसके चेहरे से, उसकी चाल से साफ़ झलक रही थी। लगभग भागती हुई सी वह रसोई में दाख़िल हुई और वहाँ पहुँचकर ठिठक गयी। उसे इस तरह हड़बड़ाते हुए देखकर सासू माँ ने आश्चर्य से उसकी तरफ़ देखा। फिर ऊपर से नीचे तक उसे निहारकर धीरे से मुस्कुराकर बोलीं, “आओ बेटा! नींद आई ठीक से या नहीं ?” अचकचाकर बोली,”जी मम्मी जी! नींद तो आई, मगर ज़रा देरी से आई, इसीलिए सुबह जल्दी आँख नहीं खुली …सॉरी…. ” बोलते हुए उसकी आवाज़ से डर साफ़ झलक रहा था। सासू माँ बोलीं, ” कोई बात नहीं बेटा! नई जगह है… हो जाता है !” शिखा हैरान होकर उनकी ओर देखने लगी, फिर बोली, “मगर…मम्मी जी, वो हलवा-पूरी?” सासू माँ ने प्यार से उसकी तरफ़ देखा और पास रखी हलवे की कड़ाही उठाकर शिखा के सामने रख दी, और शहद जैसे मीठे स्वर में बोलीं, “हाँ! बेटा! ये लो! इसे हाथ से छू दो!” शिखा ने प्रश्नभरी निगाहों से उनकी ओर देखा। उन्होंने उसकी ठोड़ी को स्नेह से पकड़ कर कहा, “बनाने को तो पूरी उम्र पड़ी है! मेरी इतनी प्यारी, गुड़िया जैसी बहू के अभी हँसने-खेलने के दिन हैं, उसे मैं अभी से किचेन का काम थोड़ी न कराऊँगी। तुम बस अपनी प्यारी- सी, मीठी मुस्कान के साथ सर्व कर देना -आज की रस्म के लिए इतना ही काफ़ी है।” सुनकर शिखा की आँखों में आँसू भर आए। वह अपने-आप को रोक न सकी और लपक कर उनके गले से लग गई ! उसके रुँधे हुए गले से सिर्फ़ एक ही शब्द निकला – “#माँ ! {दोस्तो स्टोरी कैसी लगी... ?} पोस्ट पसंद आये तो फॉलो करना

  • गाँव में तो डिप्रेशन को भी डिप्रेशन हो जायेगा।

    गाँव में तो डिप्रेशन को भी डिप्रेशन हो जायेगा। उम्र 25 से कम है और सुबह दौड़ने निकल जाओ तो गाँव वाले कहना शुरू कर देंगे कि “लग रहा सिपाही की तैयारी कर रहा है " फ़र्क़ नही पड़ता आपके पास गूगल में जॉब है। 30 से ऊपर है और थोड़ा तेजी से टहलना शुरू कर दिये तो गाँव में हल्ला हो जायेगा कि “लग रहा इनको शुगर हो गया " कम उम्र में ठीक ठाक पैसा कमाना शुरू कर दिये तो आधा गाँव ये मान लेगा कि आप कुछ दो नंबर का काम कर रहे है। जल्दी शादी कर लिये तो “बाहर कुछ इंटरकास्ट चक्कर चल रहा होगा इसलिये बाप जल्दी कर दिये " शादी में देर हुईं तो “दहेज़ का चक्कर बाबू भैया, दहेज़ का चक्कर, औकात से ज्यादा मांग रहे है लोग " बिना दहेज़ का कर लिये तो “लड़का पहले से सेट था, इज़्ज़त बचाने के चक्कर में अरेंज में कन्वर्ट कर दिये लोग" खेत के तरफ झाँकने नही जाते तो “बाप का पैसा है " खेत गये तो “नवाबी रंग उतरने लगा है " बाहर से मोटे होकर आये तो गाँव का कोई खलिहर ओपिनियन रखेगा “लग रहा बियर पीना सीख गया " दुबले होकर आये तो “लग रहा सुट्टा चल रहा " कुलमिलाकर गाँव के माहौल में बहुत मनोरंजन है इसलिये वहाँ से निकले लड़के की चमड़ी इतनी मोटी हो जाती है कि आप उसके रूम के बाहर खडे होकर गरियाइये वो या तो कान में इयरफोन ठूंस कर सो जायेगा या फिर उठकर आपको लतिया देगा लेकिन डिप्रेशन में न जायेगा। और ज़ब गाँव से निकला लड़का बहुत उदास दिखे तो समझना कोई बड़ी त्रासदी है।

  • नमक मत डालना || एक दिन भोजन में नमक छोड़ने का नियम बना रही हूंँ

    #नमक...!! "बहू!.आज किसी भी सब्जी या दाल में नमक मत डालना।" "क्यों माँजी?" "सभी के लिए हफ्ते में एक दिन भोजन में नमक छोड़ने का नियम बना रही हूंँ।" घर की नई नवेली छोटी बहू को अपने कमरे में बुलाकर सास ने समझाया और सास की बात सुन छोटी बहू ने सर हिलाकर सहमति जताई.. "ठीक है माँजी!" छोटी बहू सास के कमरे से बाहर जाने को मुड़ी ही थी कि सास ने फिर से छोटी बहू को टोका.. "सुन बहू!" "जी माँजी?" "यह बात तुम किसी को मत बताना!. भोजन के वक्त मैं खुद सभी को बता दूंगी।" "जी माँजी!" घर की छोटी बहू मुस्कुराते हुए अपनी सास के कमरे से बाहर चली गई। छोटी बहू के जाते ही उस घर की बड़ी बहू ने सास के कमरे में प्रवेश किया.. "माँजी!.लाइए आपके सर में तेल लगा दूं।" यह कहते हुए उसने अपने साथ लाई ठंडे तेल की शीशी का ढक्कन खोल हथेली भर तेल उढ़ेल लिया और सास ने भी मुस्कुरा कर उसका स्वागत किया। "मांँजी!..आपने आज छोटी को अपने कमरे में बुलाया,.कोई खास बात थी क्या?" अपनी सास के माथे पर तेल की चंपी करती बड़ी बहू ने जानना चाहा। "डांटने के लिए बुलाया था मैंने उसे!" "क्यों?" "हर रोज भोजन में नमक ज्यादा डाल देती है।" "आपने अच्छा किया माँजी!. उसे रसोई नहीं आती लेकिन यह बात वह मानने को तैयार नहीं।" बड़ी बहू की बात सुनती सास चुप रही कुछ बोली नहीं लेकिन बड़ी बहू ने अपनी मन की बात सास के सामने रखी.. "मांँजी!.आप कहे तो मैं फिर से रसोई संभाल लूं!. और उसे साफ-सफाई जैसे बाहर के काम जो आजकल मैं करती हूंँ आप उसे दे दीजिए।" "नहीं!.अभी नहीं!. आज भर देख लेती हूंँ।" सास ने मुस्कुराते हुए बड़ी बहू को आश्वासन दिया और सास की बात सुन बड़ी बहू ठंडे तेल की शीशी ले वापस सास के कमरे से बाहर चली गई। इधर भोजन का वक्त होते ही छोटी बहू ने सभी के लिए भोजन की थाली सजा दी। भोजन का पहला निवाला मुंह में डालते ही सास मुस्कुराई.. "आज भोजन बहुत स्वादिष्ट बना है!" वही रसोई के दरवाजे के पर्दे की ओट में खड़ी छोटी बहू को आश्चर्य हुआ क्योंकि उसकी सास के साथ-साथ घर के सभी सदस्य भी बड़े मन से बिना कोई नमक की शिकायत किए स्वाद लेकर भोजन कर रहे थे। भोजन समाप्त कर सास ने बड़ी बहू को अपने कमरे में आने का इशारा किया। सास का इशारा पा बड़ी बहू झटपट कमरे में पहुंची.. "मांँजी!.अपने मुझे बुलाया?" "बहू!.मुझे पता है कि,. तुम रसोई अच्छी तरह संभाल लेती हो और तुम्हें भोजन में नमक डालने का सही अंदाजा भी है।" सास के मुंह से अपनी तारीफ सुन बड़ी बहू खुश हुई.. "जी माँजी!" "लेकिन बने-बनाए भोजन में दुबारा नमक मिला देने से स्वाद बिगड़ जाता है!. शायद इस बात का अंदाजा तुम्हें नहीं है।" अपनी सास की बात सुन बड़ी बहू चौंक गई कुछ बोल ना सकी लेकिन सास ने अपनी बात पूरी कि.. "मैंने छोटी बहू को अपने कमरे में बुलाकर आज की रसोई में नमक डालने से मना किया था लेकिन फिर भी,. भोजन में नमक की मात्रा बिल्कुल सही थी।" यह सुनते ही बड़ी बहू के पैरों तले जमीन खिसक गई वह सास के पैरों में गिर पड़ी.. "मांँजी!.मुझे माफ कर दीजिए।" सास ने उसे प्यार से अपनी बाहों में थाम कर उठा.. "बहू!.तुमने अपनी गलती मानी यही बड़ी बात है,. लेकिन फिर भी मैं आज से घर के कामों के बंटवारे में एक संशोधन कर रही हूंँ।" बड़ी बहू सर झुकाए खड़ी रही लेकिन सास ने अपना फैसला सुनाया.. "आज से तुम घर की साफ-सफाई के साथ-साथ रसोई में जाकर भोजन बनाने में छोटी बहू को मदद भी किया करोगी!. ताकि वह तुम्हारी तरह नमक का सही अंदाजा सीख सके।" सास की बातों में स्वीकृति भाव से सर हिला आत्मग्लानि से भरी अपनी सास के कमरे से बाहर निकली बड़ी बहू ने रसोई में जाकर अपनी देवरानी को गले लगाया.. "मुझे माफ कर दो छोटी!" भीतर के कमरे में सास-जेठानी के बीच हुई बातचीत से अनभिज्ञ छोटी बहू अपनी जेठानी का यह रूप देख हैरान किंतु अपनी जेठानी का आत्मिक स्नेह पाकर भाव-विभोर हुई।

  • अतुलनीय रिश्ता

    दिसंबर की कड़ाके की ठिठुरा देने वाली ठंड.... ऐसे मे दिल्ली तक के सफ़र में रात मे ट्रेन में सब अपने अपने गर्म लिहाफ़ मे दुबके थे.... श्रवण भी अपनी सीट पर बस दुबकने की ही तैयारी कर रहा था। सोने से पूर्व एक बार फ्रेश होने के इरादे से वो वॉशरूम की तरफ़ गया। वॉशरूम के बाहर की ओर दरवाजे के सामने एक अधेड़ उम्र की महिला एक छोटा सा थैला लिए बैठी थी... शायद उसमें उसका सामान था। गर्म कपड़ों के नाम पर मात्र एक पतला सा शॉल ओढ़े हुए थी...जो ठंड से राहत देने के लिए काफ़ी नही थी...श्रवण ने देखा...महिला की आँखों में आँसू की बूंदें थी..जो बार बार गालों पर लुढ़क जाती.. और महिला शॉल से उसे पौंछ देती... तभी बाजू वाले ट्रैक पर कोई ट्रेन गुज़री.....उससे आती हवा में वह महिला सिहर उठी....कंप-कंपा कर स्वयं को स्वयं मे लपेटने का प्रयास करने लगी। "कहाँ जा रहीं हैं आप...."अचानक श्रवण ने पूछ लिया। महिला ने चेहरा ऊपर किया... श्रवण को देखा। "मथुरा...."महिला ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया। "टिकट नहीं लिया...."श्रवण ने पूछा। "बेटा... अचानक जाना पड़ रहा है... टीसी आएगा... तो ले लूंगी..."महिला ने आँसू पोंछते हुए कहा। "क्यों... ऐसे अचानक क्यों.... इतनी ठंड में.... आपको रिजर्वेशन करवाना चाहिए था..."पता नही क्यों पर श्रवण को उस महिला से एक जुड़ाव सा महसूस हो रहा था। "बेटा....अभी पता चला कि मेरी बेटी प्रसव के दौरान चल बसी.."कहते कहते महिला फ़फक पड़ी। "ओह.... तो आप अकेली.... परिवार का कोई और सदस्य..." श्रवण ने कुछ पूछना चाहा। "कोई भी नहीं है... हम माँ बेटी ही एक दूसरे का सहारा थीं... अभी साल हुआ... बिटिया का ब्याह किया था...."महिला सिसकती हुई बोली। इतने में टीसी आ गया।श्रवण महिला की मनःस्थिति बखूबी समझ रहा था, उसने महिला का टिकट बनवाया और उसे सीट पर बैठाकर.... अपना एक कंबल निकालकर उसे औढाया.... महिला अचरच भरी निगाहों से बस उसे देखती रही... बेचारी कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं थी...उसे तो श्रवण के रूप में जैसे स्वयं ईश्वर मिल गए थे। "मांजी.... आप ये हज़ार रुपये अपने पास रखें... और अपना पता मुझे नोट करवा दीजिए.... और फिर कभी ऐसा मत कहिएगा कि आपका इस दुनिया में कोई नहीं.... ये आपका बेटा है न... हर महीने जितना भी संभव हो.... पैसे भेजेगा... और जब कभी मौका लगेगा... मैं आपसे मिलने भी आऊंगा.... मांजी मैं आप पर कोई उपकार नही कर रहा हूँ.... मुझे भी आपके रूप में माँ मिली है...."कहकर श्रवण ने महिला के चरण स्पर्श कर लिए। महिला की आँखों से अविरल अश्रुधार प्रवाहित हो रही थी.... उसे सबकुछ स्वप्न की तरह प्रतीत हो रहा था....। महिला कंबल औढ़े चुपचाप लेटी श्रवण को निहार रही थी और श्रवण वॉलेट मे लगे अपनी माँ की तस्वीर को देख रहा था.....। कड़ाके की ठंड में जहाँ लोग अपने अपने बिस्तरों मे दुबके हुए थे.....वहाँ अपने पन के गर्म लिहाफ से ज़िंदगी के सफ़र मे एक अतुलनीय रिश्ता वज़ूद ले चुका था।

  • नाटक प्यार का || हम एक लड़की हैं और शिक्षित भी हमें यह पता है कि मर्दों से अपनी इज्जत कैसे बंचाई....

    . * नाटक प्यार का * हम एक लड़की हैं और शिक्षित भी हमें यह पता है कि मर्दों से अपनी इज्जत कैसे बंचाई जाती है मैं बालकनी से रिमझिम वर्षा के पड़ते हुए बूंदों को अपलक निहार रहा था .. कभी कभी वर्षा की कुछ बूंदें जब मेरे बदन पर पड़ जाती .तो मेरा रोम रोम सिहर जाता.उन बूंदों के पड़ने से नहीं बल्कि उन बीते हुए लम्हों के कारण जो लम्हा हमको एक गहरा जख्म दे गया था और साथ छोड़ गया था एक ऐसा दाग जो बरसात के मौसम में पानी के बूंदों को देखकर और हरा हो जाता है , उसमे से बीते हुए लम्हों की यादें मवाद की तरह रिसने लगती हैं मैं बरसात की बूंदों का टपकना देखते हुए अतीत में खो गया....... उस शाम मैं ट्यूशन पढ़ाने कुछ देर से गया था जिसके कारण आने में भी देर गई ...हम अपने छात्र के घर से निकल कर तेज तेज कदमों से अपने घर की ओर जाने लगें .....शाम का धुंधलका अपने पांव को पसारना सुरू कर दिया था.... ठंडी हवा चल रही थी बरसात का मौसम होने के कारण हमने आकाश के तरफ नजर उठाकर देखा आसमान पर काले बादल छाए हुए थे....... बारिश कभी भी सुरू हो सकती थी ......हवा तेज तेज चलने लगा था और हल्की हल्की बारिश भी सुरू हो गई थी......मैं अपने चाल में और तेजी लाते हुए अपने आस पास नजर डाला रास्ता एकदम सुनसान था और मेरी मंजील भी काफी दूर .......... कभी कभी इक्का दुक्का गाड़ी सन से बगल से गुजर जाती थीं ....…. अचानक बारिश तेज हो गई.....मैं दौड़कर पास ही एक पीपल के पेड़ के ओट में खड़ा हो गया ........ बारिश काफी तेज हो चुकी थी .....मैं वहां से घर भी नहीं जा सकता था ......... मेरा घर अभी वहां से दूर था .... अचानक बिजली कड़की और बिजली के कुछ पल के रोशनी में ही मुझे अपने से कुछ दूर पास ही झोंपड़ीनुमा टपरा दिखाई दिया ..... वह बस दस कदम की ही दूरी पर था ......मैं दौड़कर उस टपरे नुमा झोंपड़ी में घुस गया जिसे बस तीन तरफ से ही प्लास्टिक से घेरा गया था ..... ऊपर छत के नाम पर एक टीन रक्खा हुआ था ....जिसके नीचे मुश्किल से पांच या छह आदमी खड़े हो सकते थें .... मैं अन्दर घुस कर अपने बालों के पानी को झड़ता हुआ अपने चारों ओर का मुआयना करने लगा... टपरे के बाहर एक स्कूटी खड़ी थी.....मेरे पास ही एक आदमी पैंट शर्ट पहने हुए खड़ा था ....जो...शायद बारिश के बौछार से बचने के लिए मेरी ओर खिसकता जा रहा था.....उसके बदन से गुलाब के खुशबू सी फूट रही थी..... मैं उसकी ओर ध्यान ना देकर बाहर बारिश के तरफ देखने लगा .........बारिश और तेज होती जा रही थी ....... अचानक जोर से बिजली कड़की और आसमान में तेज गड़गड़ाहट की आवाज हुई........ वह शख्स जो अभी तक मेरे पास खड़ा था बिजली की गड़गड़ाहट सुनकर चीखते हुए हमसे कसकर चिपक गया था....... हमने बिजली के रोशनी में उसके चेहरे को देखा ........वह एक लड़की थी .......और लड़की भी इतनी सुन्दर की उसको देखकर शायद स्वर्ग की परियां भी शर्मा जाएं ......... वह बहुत देर तक हमसे चिपकी रही ......और जब उसे होश आया तो सॉरी बोलती हुई हमसे अलग हो गई.........मैं उसके बदन के खुशबू में सारोबार् हो चुका था...... झोंपड़ी में अब पानी की बौछार आने लगी थी...... वह खिसक कर एक बार और हमारे पास आ गई.......हम दोनों बिल्कुल सट से गए थें .... वह कांपती हुई आवाज में बोली ..... "आपको कहां जाना है "...... हमने उससे बताया कि बस पास ही यहां से एक किलोमीटर दूर मटियाला है वहीं हमारा क्वार्टर है और साथ ही हमने पूछ लिया कि आपको कहां तक जाना है ............? वह सकुचाते हुए बोली............. " हमें यहां से लगभग तीस किलोमीटर दूर लक्ष्मीनगर जाना है और हमारी स्कूटी खराब हो गई है.......समझ में नहीं आ रहा कि अब मैं क्या करूं ...? " यहां से तो अब कोई बस भी नहीं है ".......मैं चुप रहा .....अब बारिश कुछ हल्की हो गई थी । मैने सोचा की जब तक बारिश हल्की है मैं दौड़कर क्वार्टर पहुंच जाऊंगा........ परन्तु फिर सोचा इस लड़की को सुनसान जगह पर अकेली छोड़कर जाना अच्छा नहीं होगा........... मैं आहिस्ते से बोला अगर आप चाहें तो मेरे मुहल्ले तक चल सकती हैं वहां पर स्कूटी मेरे घर छोड़ दीजियेगा और आप किसी सवारी से निकल जाइएगा ......सुबह किसी मैकेनिक को लेकर आईएगा और स्कूटी ले जाईएगा............लड़की कुछ देर तक खामोश रही और फिर बोली........ " चलिए" हम दोनों स्कूटी लेकर वहां से चल पड़ें........... जब हम दोनों झोपड़ी और हमारे क्वार्टर के बराबर पहुंचें तो बारिश फिर तेज हो चुकी थी और हम दोनों बुरी तरह भींग चुके थें.......अब वापस जाकर भी झोंपड़ी तक नहीं पहुंचा जा सकता था .......... हम दोनों भींगते भींगते ही अपने एक कमरे के।क्वार्टर तक पहुंचें बाहर बाउंड्री के अंदर स्कूटी खड़ा करके हम दोनों दरवाजे तक आए .... हमने जेब से चाबी निकाल कर ताला खोला और दोनों हड़बड़ा कर अन्दर घुस गए ............बारिश और तेज हो गई थी.... हमने उसके तरफ देखा ......वह पूरी तरह भींग चुकी थी और ठंड के कारण कांप रही थी...... हमने पास खूंटी से लटक रहा तौलिया उतारा और उसके तरफ बढ़ा दिया ......... अपना एक कुर्ता ,पायजामा उसको देते हुए बोला लीजिए ........और पास ही किचन के तरफ इसारा करता हुआ कहा ....... " उधर जाकर कपड़े बदल लीजिए " वह हंसते हुए बोली ...... " क्यों यहां बदलने से क्या होगा ....? " क्या आप अपने ऊपर कंट्रोल नहीं रख पायेंगे " मैं चुप ही रहा ...वह तौलिए से अपना बाल सुखाते हुए बोली...." आप यहां अकेले रहते हैं..? " आपकी शादी नहीं हुई " हम कुछ झिझकते हुए बोले .....नहीं हमारी शादी नहीं हुई है......मैं यहां रहकर पास के कालेज में ग्रेजुयेशन कंपलीट कर रहा हूं........ वह फिर हंसने लगी और हंसते हुए बोली ....... " आपका नाम क्या है .....और आप रहने वाले कहां के हैं " हम उसके बातों को सुनकर सोच रहे थें कि.......लड़की कितने स्वछंद विचारों की है आते ही हमसे घुलमिल गई...... हमने चौंकते हुए ...उसके प्रश्न का उत्तर दिया....." जी मेरा नाम प्रकाश है और मैं रायबरेली का रहने वाला हूं....और घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण .......यहां पर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर अपना खर्च मेंटेन करता हूं ..... आज भी हम ट्यूशन पढ़ाकर ही वापस आ रहे थें " मैं पास में पड़े लोवर और टीशर्ट उठाकर बदलने लगा.....और वह पास ही किचन में जाकर कपड़े बदलने लगी...... कुछ देर बाद हम दोनों अपने अपने कपड़े बदलकर बिस्तर पर पास पास ही बैठकर चाय की चुस्की ले रहे थें ..... मैं गौर से एक टक उसके सुन्दर चेहरे को देख रहा था....... और वह कुछ सोच रही थी........ बाहर बारिश और तेज हो गई थी .....वह भी हमारे तरफ देखने लगी वह शायद हमारे चेहरे के भावों को पढ़ना चाहती थी .........हम दोनों खामोश थें अचानक उसके लव थरथराएं और वह कहने लगी " हमें भी आपही के जैसे एक जीवन साथी की जरूरत है.......जो जीवन से संघर्ष करना जानता हो " हम अचानक उसके इस बात पर चौंक उठे और हम उससे पूछ बैठें......." क्यों .....? " उसने कहा " हम आप ही के जैसे नौजवान से शादी करना चाहते हैं जो गरीब होते हुए भी शिक्षित हो क्योंकि हमारे पास दौलत की कमी नहीं है....... हमारे पापा का बहुत बड़ा कारोबार है ...मगर पापा से मैं बोल चुकी हूं कि मैं एक गरीब लड़के से ही शादी करूंगी ..... हमारे पापा भी इस फैंसले से सहमत हैं........ .हमारा नाम रोजी है........ " क्या तुम हमसे शादी करोगे प्रकाश........?" और वह हमारे बिल्कुल पास खिसक आई ..... मैं तो पहले से ही उसके सौंदर्य में खोया हुआ था........... उसके खुले आमंत्रण को पाकर मैं बेकाबू हो गया .... और उससे लिपटते हुए बोला " रोजी मैं इसे अपना सौभाग्य समझूंगा " वह भी हमसे कसकर लिपट गई...... हम दोनों लबों की प्यास एक दूसरे के लव से बुझा लेना चाहते थें ....... मेरे शरीर में मानों आग सी लग गई थी ....... मेरा हाथ उसके जिस्म पर बेतहाशा रेंग रहे थें...... और जब हम अपने हदों को पार करने लगें तो वह छिटक कर हमसे अलग हो गई.....और बोली..... " नहीं प्रकाश शादी से पहले यह सब पाप है ....... मैं यह शरीर तुम्हें सुहागरात को ही सौंपना चाहती हूं..? मैं भी अपने हरकतों पर शर्मिंदा था....उस रात .... देर रात तक हम दोनों प्यार की बातें करते रहे थें .. बाद में वह हमारे बिस्तर पर सो गई थी.....और हम नीचे फर्श पर एक चादर बिछाकर ....... फिर हमें नींद आ गई थी........ सुबह जब हमारी नींद खुली तो हमने जम्हाई लेते हुए बिस्तर के तरफ देखा वह वहां नहीं थी हमने दीवाल घड़ी के तरफ नजर डाला सुबह के साढ़े नौ बज रहे थें....... मैं हड़बड़ा कर उठा की शायद वह बाथरूम में हो .....वह वहां भी नहीं थी..... मैं दरवाजे के तरफ देखा .....दरवाजा खुला हुआ था .....मैं बाहर आया तो कैंपस में स्कूटी भी नहीं थी...... मैं जल्दी जल्दी कमरे से निकल कर रोड के तरफ दौड़ा की शायद वह स्कूटी बनवाने के लिए पास ही मैकेनिक के वहां गई हो वहां जाने पर मैकेनिक से पता चला कि सुबह साढ़े छह बजे के लगभग एक लड़की वहां स्कूटी बनवाने आई थी उसके कार्बोरेटर में कोई खराबी आ गई थी जिसे मैकेनिक ने ठीक कर दिया था और वह 15 मिनट बाद ही चली गई थी मैं लुटा पीटा सा क्वार्टर आया वहां मेरे पढ़ने वाले मेज पर एक कागज का टुकड़ा पेपरवेट से दबाकर रखा हुआ था.......... हमने झपटकर उसे उठाया और एक ही सांस में पढ़ने लगा......उसपर लिखा हुआ था.. प्रकाश , हम एक लड़की हैं और शिक्षित भी हमें यह पता है कि मर्दों से अपनी इज्जत कैसे बंचाई जाती है हम रात में फंस चुके थें और रात भर तुम्हारे घर में रहने के अलावा हमारे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था ...... चाहे मर्द जितना साधु क्यों न बने वह एक कमरे में अकेली लड़की को पा कर शैतान बन जाता है .....यही सब सोचकर हमें तुम्हारे साथ नाटक करना पड़ा.... हमको रात भर अपने घर में सुरक्षित रखने के लिए धन्यवाद......हो सके तो हमें माफ करना और कभी हमसे मिलने का प्रयास मत करना ..........एक अजनबी मैं उस पत्र को पढ़कर अपना होश खो बैठा .....हमने एक ही रात में उसको अपने दिल की रानी बना बैठा था .....कितने बड़े बड़े सपने देख बैठा था मैं..... अब उसका खत पढ़कर मेरे सारे सपने मेरे ही सामने रेत के महल की भांति भरभरा कर ढह चुके थें ..... मैं सोच रहा था कि उसने क्यों किया इतना बड़ा नाटक.......? हमने उसको ढूंढने का बहुत प्रयास किया और आज भी निरन्तर उसे ढूढने का प्रयास कर ही रहा हूं...... सिर्फ उसे यह बताने के लिए कि रोजी हर मर्द एक जैसे नहीं हुआ करतें....... बारिश थम चुकी थी..... हमने आसमान के तरफ देखा सूरज बादलों से निकल कर मुस्करा रहा था........ मेरी आंखें नम हो चुकी थीं.....हमने अपने आंखों को पोंछा और सोचने लगा क्या हमारी तलाश कभी पूरी होगी.........?

  • ज़िंदगी तो ज़िंदा दिलों का नाम है मुर्दा दिल क्या ख़ाक जिया करते हैं...!!

    पचास साठ या फिर उस से पार की भी औरतें... क्यों बंदिश लगा लेती हैं खुद पर...? कपडे ख़रीदने जाती हैं अब लाल गुलाबी तो अच्छा नहीं लगेगा इस उम्र में थोड़े फीके रंग लेने होंगे सलेटी , भूरा , क्रीम , सफ़ेद लिपस्टिक तो लगा ही नहीं सकतीं वह भी लाल हरगिज़ नहीं लोग क्या कहेंगे बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम किस ने बनाया होगा यह इडियम किसी मर्द ने ज़रूरी नहीं औरत ने भी बनाया हो सकता है सब से पहले तो औरत ही करती है कमेंट अरे , यह क्या पहना है सफ़ेद बालों का तो लिहाज़ किया होता किसी शादी , ब्याह , पार्टी पे बैठे बैठे पाँव थिरकने भी लग जाएंगे पर उठ के नाच नहीं सकती डांस फ्लोर पे तो यंगस्टर्ज़ का ही राज हो सकता है न लोग क्या कहेंगे इस उम्र में तो मंदिर जाना चाहिए दान पुन्य करना चाहिए पायल क्यों पहनी है पाँव में बेटा पूछता है अच्छा नहीं लगता बहु कहती है अब तो हमारे सजने संवरने के दिन हैं और प्यार प्यार तो हरगिज़ हरगिज़ नहीं हो सकता.... इस उम्र में भी कोई प्यार भरी बाते करता है भला अरे भई , कोई पूछे भला क्यों नहीं हो सकता प्यार करने की भी कोई उम्र होती है क्या...? प्यार का तो मतलब ही समझते गुज़र जाती है तमाम उम्र और क्यों नहीं पहन सकते लाल गुलाबी लगा सकते लाल लिपस्टिक क्यों नहीं लगा सकते ठुमका चुनाव अपना होना चाहिए दिल करे तो बादामी पहनो , दिल करे तो नारंगी सेहत इज़ाज़त दे तो नाचो नहीं तो थिरकने दो पैरों को कुर्सी पे बैठे हुए... यह बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम कह कर नीचा दिखाना छोड़ो मरने से पहले क्यों मरना ज़िंदगी तो ज़िंदा दिलों का नाम है मुर्दा दिल क्या ख़ाक जिया करते हैं...!!

  • एक गलत फहमी

    " क्या मैं अंदर आ सकता हूं सर....? हमने अंदर जाने की इजाजत मांगी....? " हां आ जाओ ...!! एक कोयल सी आवाज आई, हमने कमरे में पैर रखा कमरा क्या था मानो जैसे....... मैं किसी स्वप्न नगरी में कदम रख दिया हो , सामने एक बड़ा सा टेबल उस पर पांच सात लाल,पीले,काले रंग के लैंडलाइन टेलीफोन करीने से सजे हुए थें.....एक तरफ कुछ फाइल और..... टेबल के दूसरी ओर एक बड़ा सा रिवाल्विंग चेयर ...... चेयर पर जो शख्शियत बैठी हुई थी उसका सर नीचे की ओर झुका हुआ था .....वह शायद कुछ लिख रही थी........ मैं टेबल के सामने खड़ा होकर बगल में दबी फाइल को हाथ में लेते हुए बोला ....... " सर..... उसने अपने सर को ऊपर की ओर उठाया और मेरे तरफ एकटक देखने लगी........! उसके चेहरे को देखते ही मानो जैसे मुझे चक्कर आने लगा.....आंखों के आगे अंधेरा छा गया..... मेरे मन में बस एक ही आवाज उठी " बेटा तुम्हारी हो चुकी नौकरी....." मैं बाहर जाने के लिए मुड़ा ही था कि पीछे से एक कड़कदार आवाज आई ...... " ठहरो...!! मेरे कदम जहां थें वहीं रुक गए.....वह बोली.... " बैठो.....!! मैं थके थके कदमों से कुर्सी के पुश्त का सहारा लेते हुए बैठ गया, वह पुन: बोली .... " क्या नाम है तुम्हारा .......!! " राहुल...…!! " कहां तक शिक्षा है तुम्हारी........!! उसके अगले प्रश्न को सुनकर मैं अपने आपको कुछ हद तक संयत करते हुए उत्तर दिया..... " एम०काम० प्रथम श्रेणी टाइपिंग एवं शार्टहैंड भी जनता हूं ...... अपनी बात कहकर नजरें दूसरी ओर करते हुए फाइल उसके तरफ बढ़ा दिया ..वह फाइल खोलकर एक सरसरी सी नजर उसपर डालते हुए उसने टेबल पर रखे हुए घंटी को बजा दिया ....चपरासी अन्दर आते ही बोला..... " जी मैडम.....! " " हरि सिंह जरा टाईपिस्ट मिस डॉली को कहो कि मैडम बुला रहीं हैं.....! " " जी मेम साब.....! " हरि सिंह बाहर चला गया और वह पुनः फाइल पर झुक गई , मैं बस यूं ही खामोश खामोश सोच रहा था कि शायद यह उस दिन का बदला लेगी मेरा दिल धड़क रहा था ....उस दिन की घटना को सोचकर ... जब हम ऐसे ही एक दिन सुबह सुबह नौकरी के लिए इन्टरव्यू देने जा रहे थें पास में किराया नहीं होने के कारण पैदल ही जा रहे थें.... रात को बारिश होने के चलते सड़क के अगल बगल के गड्ढों में पानी भरा हुआ था.... जहां तहां कीचड़ ही कीचड़ था मैं अपने सोचों में गुम तेज तेज कदमों से चला जा रहा था कि..... मेरे बगल से अचानक एक बड़ी सी कार गुजरी जिसकी स्पीड कुछ ज्यादा ही थी.... कार कीचड़ सने गड्ढे में से होती हुई छपाक से मेरे ऊपर कीचड़ बिखेरती हुई बगल से गुजर गई.... मैं कीचड़ से लगभग सन चुका था ....मुझे बड़ी तेज गुस्सा आया क्योंकि अगर ड्राइवर चाहता तो मुझे बचा सकता था... अपने गाड़ी की स्पीड थोड़ी कम कर के या फिर बगल से घुमाकर परन्तु उसने मुझे बचाने की जरा सी भी कोशिश नहीं की थी..... हमे गुस्सा आना स्वाभाविक था..हम अभी गाड़ी के तरफ देख ही रहे थें कि सामने चौराहे का ट्रैफिक सिग्नल लाल हो गया और कार रुक गई.... मैं दौड़ पड़ा और कार के ड्राइवर वाले साइड से जाकर खिड़की के अन्दर हाथ बढ़ाकर ड्राइवर का कॉलर पकड़कर बाहर खींचते हुए चीखा.... " साले अंधे के तरह गाड़ी.. ...चलाते...हो.. जमीन के लोग कीड़े मकोड़े दिखाई देते हैं...! " वहां पर भीड़ बढ़ने लगी थी..... कार का दरवाजा खुला .... अन्दर से ड्राइवर की जगह एक बाइस चौबीस साल की बला सी खूबसूरत लड़की निकली और गुस्से से बोली ..... " क्या हुआ....! " हमने अपने कपड़े की तरफ इशारा करते हुए बोला " यही हुआ....क्या ...अब भी तुम्हें दिखाई नहीं देता....! " वह मेरे कपड़ों को देखते हुए बोली.... " सॉरी मैं जरा हड़बड़ी में थी...! " हम बड़ी तेज तेज आवाज में बोलने लगे थें.... भीड़ में ज्यादातर लोग पैदल चलने वाले ही थें.... वे लोग भी हमारा ही समर्थन करने लगे थें....और उसे हाथ जोड़कर हमसे माफी मांगना पड़ा था ....तब कहीं जाकर .... भीड़ ने उसे जाने दिया था........ आज वही लड़की मेरी भाग्य विधाता बनकर कुर्सी पर बैठी हुई थी और मैं याचक के रूप में उसके सामने खड़ा था.….... मैं ख्यालों में गुम ही था कि अचानक आवाज सुनकर मेरी तंद्रा भंग हुई....... " यस मैडम आपने हमको बुलाया है....! हमने बोलने वाली लड़की के तरफ देखा छब्बीस सत्ताइस साल की एक सुंदर युवती थी...हमने अंदाजा लगाया ....शायद यही टाईपिस्ट मिस डॉली है..अचानक वह रिवाल्विंग चेयर वाली बोल उठी .... " डॉली तुम मिस्टर राहुल का पेपर लेकर असिस्टेंट मैनेजर का अप्वाइंटमेंट लेटर टाईप करो .....और बाहर राम सिंह को कहती जाना की वह बाहर...इन्टरव्यू के लिए बैठे बाकी ...लड़कों को बोल देगा....... कि वह जाएं........ सलेक्शन हो चुका है.....! " मैं उसकी बातों को सुनकर आश्चर्य के सागर में गोते लगा ही रहा था कि वह बोल पड़ी...... " अच्छा तो मिस्टर राहुल ...आप काम पर कब से आ रहे हैं.....! " मैं चेहरे पर शर्मिंदगी का भाव लिए हुए ....नजरें झुकाकर बोला ...... " जी मैडम.... आप जबसे कहें.....! " वह मुस्कराते हुए बोल पड़ी..... " आप कल से ही ज्वाइन कीजिए ...मगर ऑफिस में यह कपड़ा नहीं चलेगा.....क्या आपके पास सूट वगैरह है....या नहीं....! " मैं हिचकिचाते हुए बोला...... " जी अभी फिलहाल तो नहीं है .. पगार मिलने पर बनवा लूंगा.....! " " मिस्टर ऐसे नहीं चलेगा.....! " हम लोग अभी बात कर ही रहे थें कि तब तक डॉली मेरा अप्वाइंटमेंट लेटर टाईप करके लेकर आ गई.... वह मैडम के तरफ लेटर बढ़ाती हुई बोली..... " टाईप हो गया मैडम.....! " वह डॉली के हाथ से लेटर लेकर हमको देती हुई बोली....... " लीजिए और कल से काम पर आ जाइए... आपका पगार ..बीस हजार रुपए प्रतिमाह होगा ...आप सहित आपके पूरे परिवार के दवा और आवास की व्यवस्था कंपनी के तरफ से ......... आपको कंपनी आने जाने के लिए गाड़ी भी मिलेगी......! " मैं उठ गया था फिर धन्यवाद कहते हुए बोला..... " अच्छा मैडम तो मैं चलूं....! " वह चेयर से उठते हुए बोली...... " अभी नहीं...अभी आपको हमारे साथ चलना होगा.....! " मैं उसके साथ ऑफिस से बाहर आया फिर..वह मुझे अपने गाड़ी में बैठाकर बाजार ले गई और हमारे लाख ना ना कहने पर भी तीन चार सूट जूता व एक ब्रिफकेश खरीद चुकी थी.... इस बीच मैं उससे काफी घुल मिल गया था....... अब क्या होगा राहुल का.......? क्या राहुल के जिंदगी में अचानक राजयोग आ चुका था या फिर यह एक दिवास्वप्न ही था....? जानने के लिए पढ़ें अगले अंक मे....... क्रमश..... (अब तक आपने पढ़ा कि राहुल एक बेरोजगार लड़का है जो नौकरी के लिए भाग दौड़ कर रहा होता है और इसी क्रम में एक दिन किराया नहीं होने के कारण पैदल इन्टरव्यू देने जाते समय एक अमीर लड़की के कार से राहुल के कपड़ों पर कीचड़ का छींटा पड़ जाता है और उसके कपड़े खराब हो जाते हैं उस लड़की से राहुल का नोक झोंक हो जाता है अंत में राहुल के पक्ष में उपस्थित.... भीड़ के होने के चलते नहीं चाहते हुए भी लड़की को राहुल से माफी मांगनी पड़ती है...और बाद में एक दिन जब राहुल एक कम्पनी में इंटरव्यू देने जाता है तो .....मालिक के कुर्सी पर उसी लड़की को देखकर घबरा जाता है... परन्तु आशा के विपरीत वह लड़की राहुल को सेलेक्ट ही नहीं करती बल्कि लाख ना ना करने के बाद भी उसके लिए कपड़ों आदि की खरीददारी कर देती है......) अब आगे...... जब उसने हमारे मुहल्ले के मोड़ पर गाड़ी रोकी तो मैं गाड़ी से उतरते ही बोला...... " उस दिन के घटना के लिए मैं काफी शर्मिंदा हूं...अगर हो सके तो हमे माफ कर दीजियेगा....! " वह बोली कुछ नहीं बस मुस्कराने लगी उसकी धवल दंतपंक्तियां जगमगा उठीं ....वह अपने पर्स को खोलते हुए बोली...... " घर में कौन कौन हैं ....! " " जी मां है और एक छोटी बहन है.....! " हमने आहिस्ते से कहा...वह पर्स से पांच पांच सौ के चार नोट निकाल कर हमारे तरफ बढ़ाई..... उसके हाथ से रुपए लेने में हमारे झिझक को देखकर वह बोली.... " ले लीजिए घर में नौकरी मिलने के खुशी में मिठाई नहीं ले जाना है क्या .....? " हमने रुपया ले लिया...... उसके मुस्करा कर कार स्टार्ट करते ही ....मैने झट से उसको नमस्कार किया...... " अच्छा नमस्कार मैडम.....! " " आप हमको शोभा कह सकते हैं....... वह हंसते हुए.....फिर बोली...... " कल सुबह आठ बजे तैयार रहिएगा...हम इधर से ही जाते हैं आपको लिफ्ट दे देंगे...! " कहते हुए शोभा गाड़ी आगे बढ़ा चुकी थी और.... मैं उसके व्यवहार....रूप..सौंदर्य में इस कदर खो चुका था कि....उसी तरह ना जाने कब तलक वहीं खड़ा रहा ...उसका यों मुझको नौकरी दे देना ...फिर कपड़े खरीदकर देना..घर तक छोड़ना..रुपए देना..यह सब ऐसे ही नहीं कोई कर देता......मेरे मन में न जाने कितने प्रश्न उस समय उठ रहे थें....और मैं मन ही मन सोच रहा था " राहुल बेटा तेरे तकदीर की लॉटरी खुल गई.......एक अरबपति चिड़िया फंस गई...! " फिर जब मैं ख्यालों के समन्दर से बाहर आया तो घर के तरफ चल दिया ....मैं रास्ते में बनिए के दुकान से मिठाई भी ले लिया था....... मैं घर में घुसते ही चिल्ला उठा...." अंजू ...ओ अंजू तुम कहां हो...मां....मां..यहां आओ........! " मां आती हुई जोर से बोली.... " क्या बात है..जो..आते ही घर ..को.. सर पर उठा ..लिए....! " " मां पहले अपना मुंह खोलो और आंखें बंद करो..! " मैने कहा....! मां बोली... " आखिर बात क्या है...कुछ बोलोगे भी या बस यूं ही..पहेलियां ही बुझाते रहोगे....! " हमने कहा ....! " " पहले जैसा कहा वैसा करो...! " " लो बाबा बन्द किया...! " हमने झट से एक रसगुल्ला डब्बे से निकाल कर मां के मुंह में रख दिया...मां ने अपनी आंखें खोल दी और मुंह चलाते हुए कुछ बोलने ही वाली थी कि तब तक मेरी छोटी बहन अंजू भी आ गई..... हमने उसको मिठाई का पैकेट देते हुए बोला..... " अंजू....मां ....मुझे नौकरी मिल गई...मैं कल से शोभा इंडस्ट्रीज ऑफ कंपनी में असिस्टेंट मैनेजर के रूप में कार्य करूंगा...भगवान का लाख लाख शुक्र है कि उन्होंने हमारी प्रार्थना सुन ली.....मां मैने यह तो बताना ही भूल गया था कि...हमारा तनख्वाह बीस हजार रुपए महीना और कंपनी के तरफ से आवास ,चिकित्सा ,कंपनी आने जाने के लिए एक कार भी कंपनी देगी.....! " मां और अंजू दोनों को सुनकर बहुत खुशी हुई....मैं उस दिन देर रात तक जागकर शोभा के ख्यालों में गुम रहा ....कभी ख्यालों में ही शोभा से शादी कर रहा होता था ...तो कभी ... हनीमून स्वीटजरलैंड में मना रहा होता था........ दूसरे दिन सुबह ही शोभा आकर मुझको कंपनी ले गई ...मैं सूट पहनकर राजकुमार लग रहा था...मैं उसी दिन से कंपनी लगातार जाने लगा...शोभा मुझे एक नई कार खरीदकर दे चुकी थी.....वह हमको पार्टी वगैरह में साथ ले जाती ...और सारे ड्यूटी के टाईम में से ....पांच या छह घंटे अपने पास ही रखती थी..हम आपस में काफी घुल मील गए थें....कभी हमें पैसे की जरूरत महसूस होती और जब मैं उससे एक हजार मांगता तो वह जबरदस्ती पांच हजार दे देती........ परन्तु इस बीच हमने उसमें एक बात नोट की थी कि वह हमें बहुत इज्जत देती है ....कभी भी मेरे नौकर होने के बावजूद भी वह हमको " तुम " नहीं कहती थी....और कभी अचानक उसके केबिन में मेरे पहुंच जाने पर वह अपने आपको ठीक ठाक करने लगती थी जैसे मैं ही उसका मालिक होऊं....और वह हमारी नौकर..... उस बीच हमने कई बार ऐसा चाहा कि.....मैं उससे अपने प्यार का इजहार कर दूं.....पर संकोच के कारण .....उससे अपनी बात नहीं बता पाया था..... वह कभी कभी बात करते वक्त मेरे चेहरे को बड़ी गौर से देखने लगती.. थी.....और..एका एक खामोश हो जाया करती थी.....और मैं समझता था कि शायद यह आज ख़ुद ही अपने प्यार का इजहार मुझसे कर दे ..... परन्तु वह चुप ही रहती थी...... एक दिन हम दोनों डिनर करने के लिए होटल ताज गएं....हालांकि ....मैं वहां जाना नहीं चाहता था परन्तु वह मुझे जबरदस्ती ले गई.....हम दोनों... कोने में बेंच पर बैठकर बस यूं ही बात कर रहे थें कि अचानक वह मेरे कंधे पर अपना सर रखकर रोने लगी ....मैं उसका रोना देखकर भावुक हो उठा...और उसके सर के बालों में अपने उंगलियों से कंघी करने लगा.....वह रो रही थी...और मैं तड़प रहा था.....अचानक मैं भी उससे लिपट गया...और बेतहाशा ....उसको चूमने लगा ....मैं अधिक देर तक खामोश नहीं रह सका और एक ही झोंक में कह गया... " शोभा मैं तुम्हें जान से भी ज्यादा... चाहता हूं.......मैं तुम्हारे बिना एक पल भी जिंदा नहीं रह सकता ...! " मैं अपनी बात कहता हुआ...उसको बेतहाशा चूम रहा था...और मेरे दोनों हाथ उसके बदन पर रेंग रहे थें.....अचानक वह मुझे पीछे के तरफ धकेल कर अलग हो गई....और तड़ाक से मेरे मुंह पर थप्पड़ मारते हुए बोली ...... " कमीने मैं तुझे क्या समझ रही थी...और..तूं..क्या निकला...! " उस समय उसके आंखों से मानो अंगार बरस रहा था...मैं बोल पड़ा " सॉरी शोभा जी मैं भावनाओं में बहकर न जाने क्या क्या कह गया ...! " वह बस दहकती हुई आंखों से मुझे निहारे जा रही थी ..जैसे...वह मुझे कच्चे चबा जाना चाहती हो...और बस यूं ही देखती देखती अचानक बोल पड़ी........ " तुमसे मेरे दिवंगत बड़े भाई की शक्ल मिलती जुलती थी इसलिए मैं तुमको अपने बड़े भाई के रूप में देखकर ही उस दिन वाले घटना के बाद भी तुम्हे नौकरी दी.......और....तुम.......... मेरा सर शर्म से झुक गया था और मैं सोच रहा था कि मैं कितनी बडी भूल करने जा रहा था.............. मेरे दिमाग के सारे दरवाजे खुल चुके थें......!! (समाप्त) आभार :-मनोज सिंह

  • बेटियां दो कुलो को महकाती है

    विवाह के बाद पहली बार मायके आयी बेटी का स्वागत सप्ताह भर चला। सप्ताह भर बेटी को जो पसन्द है, वही सब किया गया।वापिस ससुराल जाते समय पिता ने बेटी को एक अति सुगंधित अगरबत्ती का पुडिया दिया और कहा की-बेटी, तुम जब ससुराल में पूजा करने जाओगी,तब यह अगरबत्ती जरूर जलाना* माँ ने कहा:- बिटिया प्रथम बार मायके से ससुराल जा रही है,तो भला कोई अगरबत्ती जैसी चीज देता है...? पिता ने झट से जेब मे हाथ डाला और जेब मे जितने भी रुपये थे,वो सब बेटी को दे दिए.. ससुराल में पहुंचते ही सासु माँ ने बहु के माता-पिता ने बेटी को बिदाई में क्या दिया,यह देखा तो वह अगरबत्ती का पुड़िया भी दिखा। सासु माँ ने मुंह बना कर बहु को बोला कि-कल पूजा में यह अगरबत्ती लगा लेना... सुबह जब बेटी पूजा करने बैठी, अगरबत्ती का पुड़िया खोला तो उसमे से एक चिट्ठी निकली लिखा था... "बेटा यह अगरबत्ती स्वतः जलती है,मगर संपूर्ण घर को सुगंधित कर देती है।इतना ही नही, आजू-बाजू के पूरे वातावरण को भी अपनी महक से सुगंधित एवम प्रफुल्लित कर देती है...!! हो सकता है की तुम कभी पति से कुछ समय के लिए रुठ जाओगी या कभी अपने सास-ससुरजी से नाराज हो जाओगी,कभी देवर या ननद से भी रूठोगी, कभी तुम्हे किसी से बाते सुननी भी पड़ जाए, या फिर कभी अडोस-पड़ोसियों के बर्ताव पर तुम्हारा दिल खट्टा हो जाये, तब तुम मेरी यह भेंट ध्यान में रखना अगरबत्ती की तरह जलना, जैसे अगरबत्ती स्वयं जलते हुए पूरे घर और सम्पूर्ण परिसर को सुगंधित और प्रफुल्लित कर ऊर्जा से भरती है, ठीक उसी तरह तुम स्वतः सहन करते हुए ससुराल को अपना मायका समझ कर सब को अपने व्यवहार और कर्म से सुगंधित और प्रफुल्लित करना... बेटी चिट्ठी पढ़कर फफक कर रोने लगी,सासू मां लपककर आयी, पति और ससुरजी भी पूजा घर मे पहुंचे जहां बहु रो रही थी। "अरे हाथ को चटका लग गया क्या?, ऐसा पति ने पूछा। "क्या हुआ यह तो बताओ, ससुरजी बोले। सासु माँ आजु बाजु के सामान में, कुछ है,क्या यह देखने लगी तो उन्हें पिता द्वारा सुंदर अक्षरों में लिखी हुई चिठ्ठी नजर आयी, चिट्ठी पढ़ते ही उन्होंने बहु को गले से लगा लिया और चिट्ठी ससुरजी के हाथों में दी। चश्मा ना पहने होने की वजह से चिट्ठी बेटे को देकर पढ़ने के लिए कहा। सारी बात समझते ही संपूर्ण घर स्तब्ध हो गया। "सासु माँ बोली अरे, यह चिठ्ठी फ्रेम करानी है। यह मेरी बहु को मिली हुई सबसे अनमोल भेंट है, पूजा घर के बाजू में में ही इसकी फ्रेम होनी चाहिए, और फिर सदैव वह फ्रेम अपने शब्दों से, सम्पूर्ण घर, और अगल-बगल के वातावरण को अपने अर्थ से महकाती रही, अगरबत्ती का पुड़िया खत्म होने के बावजूद भी... क्या आप भी ऐसे संस्कार अपनी बेटी को देना चाहेंगे ... शिक्षा:-समस्त जनों से अनुरोध है कि,जैसी इस बेटी के पिता ने, अपनी बेटी को सीख दी,वैसे सभी अपनी बेटियों को दे । जिससे हर घर सुगंधित हो सके. सभी माता पिता एवम स्वजनों को समर्पित याद रहे बेटियां दो कुलो को महकाती है ...!!

  • एक हिंदू, एक भारत, श्रेष्ठ भारत ।

    कभी जरा सोचिए.... पुराने जमाने में जब हॉस्पिटल नहीं होते थे और घरों में ही प्रसव होते थे तो बच्चे की नाभिनाल कौन काटता था, मतलब पिता से भी पहले कौन सी जाति बच्चे को स्पर्श करती थी ? आपका मुंडन करते वक्त आपको कौन स्पर्श करता था ? शादी के मंडप में नाउन और धोबन भी होती थीं तो आखिर क्यों ? लड़की का पिता, लड़के के पिता से इन दोनों के लिए साड़ी की मांग करता था।वाल्मीकियों के बनाये हुए सूप से ही छठ व्रत होता था और अभी भी होता है। आपके घर में कुँए से पानी कौन लाता था ? भोज के लिए पत्तल कौन सी जाति बनाती थी ? किसने आपके कपड़े धोये थे ? डोली अपने कंधे पर कौन मीलों-मील दूर से लाता था? और उनके जिन्दा रहते किसी की मजाल नहीं थी कि आपकी बिटिया को छू भी दे । किसके हाथों से बनायी मिट्टी की सुराही से जेठ महीने में आपकी आत्मा तृप्त हो जाती थी ? कौन आपकी झोपड़ियां बनाता था ? कौन आपकी फसल लाता था ? कौन आपके परिजनों की चिता जलाने में सहायक सिद्ध होता है ? जीवन से लेकर मरण तक सब सबको कभी न कभी स्पर्श करते थे । . . . . . और स्वार्थी लोग कहते हैं कि छुआछूत था । यह छुआछूत की बीमारी विदेशी आतत्तायी मलेच्छ अरबी लोगों और धूर्त ईसाईत अंग्रेजों ने हिंदू धर्म को तोड़ने के लिए एक साजिश के तहत डाली थी । अंग्रजों के जाने के बाद स्वार्थी राजनेताओं ने अपनी राजनीति स्वार्थ के लिए इसी कार्य को चरम पर पहुंचाया। जातियां थीं, पर उनके मध्य एक प्रेम की धारा भी बहती थी, जिसका कभी कोई उल्लेख नहीं करता । अगर जातिवाद होता तो राम कभी शबरी के जूठे बेर ना खाते,वाल्मीकि के द्वारा रचित रामायण कोई नहीं पढ़ता, ब्राह्मण सुदामा कभी यादव कृष्ण से पैर ना धुलवाते ! जातियों में मत टूटिये, धर्म से जुड़िये, देश को जोड़िये और समाज में जागरूकता फैलाइए । सभी को अवगत कराएं ! सभी हिन्दू जातियाँ सम्माननीय हैं... एक हिंदू, एक भारत, श्रेष्ठ भारत ।

  • स्त्रिया मर्दो से कम नहीँ..

    एक अमीर आदमी की शादी बुद्धिमान स्त्री से हुई। अमीर हमेशा अपनी बीवी से तर्क और वाद-विवाद मेँ हार जाता था। बीवी ने कहा की स्त्रिया मर्दो से कम नहीँ.. अमीर ने कहा मैँ दो वर्षो के लिये परदेश चला जाता हूं । तुम , एक महल ,बिजनेस मेँ मुनाफा और एक बच्चा पैदा करके दिखा दो। आदमी परदेश चला गया... बीवी ने सारे कर्मचारियोँ मेँ ईमानदारी का बोध जगा के और मेहनत का गुण भर दिया। पगार भी बढ़ा दी। सारे कर्मचारी खुश होकर दिल लगा के काम करने लगे। मुनाफा काफी बढ़ा... बीवी ने महल बनवा दिये.. बीवी ने दस गाय पाले.. काफी खातिदारी की... गाय का दूध काफी अच्छा हुआ.. दूध से दही जमा के परदेश मेँ दही बेचने चली गई वेश बदल के.. अपने पति के पास बदले वेश मेँ दही बेची.. और रूप के मोहपाश मेँ फँसा कर संबंध बना ली। फिर एक दो बार और संबंध बना के अँगुठी उपहार मेँ लेकर घर लौट आई। बीवी एक बच्चे की माँ भी बन गई। दो साल पूरे होने पर पति घर आया। महल और शानो-शौकत देखकर पति दंग और प्रसन्न रह गया। मगर जैसे बीवी की गोद मेँ बच्चा देखा क्रोध से चीख उठा किसका है ये? बीवी ने जब दही वाली गूजरी की याद दिलाई और उनकी दी अँगुठी दिखाई तो अमीर काफी खुश हुआ। बीवी ने कहा-ः अगर वो दही वाली गुजरी मेरी जगह कोई और होती तो??? इस ''तो'' का उत्तर तो पूरी पुरूष जाति के पास नहीँ है। नारी नर की सहचरी, उसके धर्म की रक्षक, उसकी गृहलक्ष्मी तथा उसे देवत्व तक पहुँचानेवाली साधिका है।

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