"सौभाग्य.....
मेरी सुनो......लड़का बहुत अच्छा है मालती..... अगर लडकेवालो को हमारी छोटी बेटी सुधा ही पसंद है तो छोटी की शादी ठीक कर देते है ना .....
हां.....निशा के पापा..... और वैसे भी निशा से दो साल ही तो छोटी है सुधा..... देर सबेर उसका भी विवाह हमें करना ही है उसके बाद ही निशा का कर देंगे....
ठीक है ....तुम सुधा को लेकर बाहर हाल मे पहुंचो.... वह लोग इंतजार करते होंगे...
मम्मी पापा की बातचीत सुन रही अंदर कमरे से निशा और सुधा दोनो बहनों ने एकदूसरे को देखा ..... फिर कुछ सोचकर निशा ने सुधा के सिरपर मुस्कुरा कर हाथ फेर दिया और वह सुधा के कपडो को ठीक से संवारने लगी.... कुछ ही पलों में सुधा मां के साथ बाहर हाल में चली आई...
जी ....लीजिए....आ गई हमारी छोटी बेटी सुधा ... .. नमस्ते करो बेटा.....वैसे हमारी सुधा सुंदर भी है और पढ़ी लिखी भी.....कालेज जाती है ....सुधा के पिता ने परिचय देते हुए कहा....
सुंदर और पढ़ी लिखी तो निशा दीदी भी है.... फिर आपलोगों ने मुझे क्युं..... सुधा के मन में पता नही क्या चल रहा था उसने सवाल ना सिर्फ बोलते ब्लकि अपनी आँखों से लड़के की तरफ भी किया....
जी बिलकुल वो भी सुंदर लगी थी ...... मगर आपको देखा तो......आप ज्यादा सुंदर हैं उनसे.... इसलिए हमलोगों ने .....
अरे ये तो हमारी सुधा का सौभाग्य है कि आपने ..... सुधा के पिता रिश्ते को आगे बढ़ाना चाहते थे...
नही पापा..... ये हमारी निशा दीदी का सौभाग्य है कि उनका रिश्ता इनसे नही हो रहा और मैं भी खुद का दुर्भाग्य नहीं लिखना चाहती....
सुधा....ये तू क्या बोल रही है बेटा...
पापा इन्हे निशा दीदी से सुंदर मैं लगी....... कल मुझसे सुंदर कोई और लगेगी....और बाहरी सुंदरता का तो कोई अंत ही नहीं है ना पापा..... इसलिए इस रिश्ते का अंत यहीं कर देना मेरा सौभाग्य होगा.... कहकर सुधा अंदर की ओर चली गई ...... वहीं निशा और सुधा ने के पिताजी ने लडकेवालो को हाथ जोड दिए ....जो शर्मिंदगी से सिर झुकाए वहां से चुपचाप निकल गये..... एक प्ररेणादायक रचना...
