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Manautee || A true Story

  • Writer: ELA
    ELA
  • Sep 4, 2024
  • 3 min read
मनौती

आनंद शर्मा का पूरा परिवार तीर्थस्थल पर जाने की तैयारी कर रहा था। आनंद जी की पत्नी पैकिंग आदि में लगी हुई थीं। फ्लाइट की टिकट, होटल की व्यवस्था सब हो गई थी। मंदिर के एजेंट ने उनके तुरंत दर्शनों की व्यवस्था भी कर दी थी।

अपने बेटे की बीमारी के दौरान जब डॉक्टरों ने भी उम्मीद छोड़ दी थी। तब उन्होंने अपने बेटे के लिए मंदिर में 25 तोले सोने का मुकुट चढ़ाने की मनौती मानी थी। ईश्वर की कृपा और डॉक्टरों के प्रयास से बेटा पूर्णतया स्वस्थ हो गया था। घर में तैयारी का माहौल देख ऐसा लग रहा था कि कोई बड़ा जश्न मन रहा हो।

आनंद सुबह चाय पी रहे थे तभी उनका नौकर विनोद आया और चुपचाप खड़ा हो गया।

आनंद ने पूछा ," विनोद कुछ काम है क्या.... "

उनके इतना पूछते ही विनोद रोने लगा और भावविह्वल हो कहने लगा ," साहेब बिटिया की शादी तय कर दी थी तारीख पास आ गई है। सोच रहा था" फसल बिक जायेगी पर बाढ़ सब तहस नहस कर गई।"

साहेब हमें दो लाख रुपया उधार दे दीजिए.. " तनख्वाह से काटते रहिएगा ,फसल का पैसा आएगा तो चूका दूंगा। "

एकदम से भड़क उठे आनंद "मेरे ठेके पर बिटिया की शादी तय की थी ,छोड़ दे नौकरी छोड़नी है ,मेरे पास पैसा नहीं है "।

नौकर सन्नाटे में आ... चुपचाप अपने काम में लग गया ये सोचते हुए कही लगी लगाई नौकरी छूट गई तो क्या करेगा।

आनंद का बेटा अपने पापा तथा नौकर का वार्त्तालाप सुन रहा था।नौकर के जाने के बाद अपने पापा के पास आया और बोला, "पापा आपसे कुछ कहूंगा प्लीज बुरा मत मानियेगा। "

पापा हम मन्दिर में तीस लाख का मुकुट चढ़ाने जा रहे हैं , नौकर ने आपसे दो लाख रुपये मांगे ,वो भी उधार,जो हमारी जी जान से सेवा करता है। आपके पैसे से उसकी बेटी की शादी जैसा पुनीत कार्य होगा... मुकुट तो पंडित जी एक बार पहना कर, क्या करेंगे पता नहीं।"

आनंद गरजे " तू समझता नहीं ,जब कोई रास्ता नहीं दिख रहा था तब तेरी माँ ने ये मनौती मानी और प्रभु के चमत्कार से तू स्वस्थ हो गया , "अब हम वो मनौती तो पूरी ही करेंगे।"

पर पापा अगर आप ये तीस लाख रुपये जरुरत मंदो के लिए इस्तेमाल करेंगे तो कितनो की ज़िंदगी खुशियों से भर जाएगी , कितनी दुआये देंगे वो सब , मैं तो यही चाहता हूं। माँ-पापा आप विचार तो करें।"

बेटे की बातों से दोनों ही पति -पत्नी बहुत प्रभावित हुए।

देर रात तक सोचते रहे और सुबह जब सो कर उठे तो लगा हृदय निर्मल हो गया है। नाश्ते की टेबल पर जब सब बैठे तो आनंद ने बेटे को गले से लगा लिया और बोले , अनुज बेटा तूने मेरी आँखे खोल दी। हम दर्शन करने जा रहे , प्रसाद भी चढ़ाएंगे। पर इस तीस लाख को मैं जरूरतमंदों की मदद में ही लगाऊंगा।

नौकर को आवाज देकर बुलाया ," विनोद ये दो लाख रुपये ले जाओ ,शादी की तैयारियां करो और हां ये बेटी को मेरी तरफ से भेंट है , तुम्हें लौटाने नहीं है।

विनोद हतप्रभ सा उन्हें देखने लगा तो वो बोले ये अनुज बेटा की करामात है उसे ही आशीष दो।

आनंद अपने बेटे और पत्नी के साथ सुकून से नाश्ता करने लगे सबके अधरों पर संतोष की मुस्कान थी


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