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ज़िंदगी के कुछ और पैमाने तय करो, बस जी लेना ही तो ज़िंदगी नहीं!

  • Writer: ELA
    ELA
  • 6 days ago
  • 1 min read

"ज़िंदगी के कुछ और पैमाने तय करो, बस जी लेना ही तो ज़िंदगी नहीं..."

हर दिन सूरज उगता है, हम उठते हैं, काम पर जाते हैं, लौटते हैं और सो जाते हैं। इस चक्र में कहीं ज़िंदगी जीने का असली मतलब खो न जाए, ज़रा रुक कर सोचो।

क्या सिर्फ साँस लेना, समय पर खाना खाना और ज़िम्मेदारियाँ निभाना ही ज़िंदगी है?

नहीं...ज़िंदगी तब होती है जब हम महसूस करते हैं।जब किसी शाम बिना वजह मुस्कुराते हैं,जब किसी बच्चे की हँसी हमें भीतर तक छू जाती है,जब हम अपने जुनून के लिए वक़्त निकालते हैं,या जब हम खुद को थोड़ा-सा और समझ लेते हैं।

कुछ और पैमाने तय करो...● खुश रहना एक पैमाना हो।● दिल से जीना एक पैमाना हो।● अपनों के लिए वक़्त निकालना एक पैमाना हो।● खुद को पहचानना एक पैमाना हो।● कुछ नया सीखना, कुछ अच्छा बाँटना – ये भी ज़िंदगी का हिस्सा हो।

बस साँसों के चलने को ज़िंदगी मत मानो।ज़िंदगी वो है जो तुम्हें भीतर से जगाए, गहराई दे, और मक़सद दे।

"ज़िंदगी को गिनो मत, उसे महसूस करो..."





ज़िंदगी के कुछ और पैमाने तय करो बस जी लेना ही तो ज़िंदगी नहीं


ज़िंदगी के कुछ और पैमाने तय करो, बस जी लेना ही तो ज़िंदगी नहीं!

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