प्रेम स्वतः ही तुम्हें लचीला बना देगा प्रेम में कठोरता संभव ही नहीं
- ELA
- Apr 8
- 1 min read
"प्रेम स्वतः ही तुम्हें लचीला बना देगा...प्रेम में कठोरता संभव ही नहीं।।"
सच्चा प्रेम तुम्हें तोड़ता नहीं,
वो तुम्हें मरोड़ता नहीं...
बल्कि तुम्हें नम्र बना देता है,
इतना कि तुम किसी के दर्द को भी अपना समझने लगो।
प्रेम में ज़िद नहीं होती — समर्पण होता है।
प्रेम में आवाज़ ऊँची नहीं होती —बस धड़कनों की भाषा होती है।
जो प्रेम करता है,वो झुकने को कमजोरी नहीं समझता,
वो जानता है —जहाँ प्रेम है, वहाँ अहम की कोई जगह नहीं।
प्रेम कभी भी कठोर नहीं होता…वो खुद ही तुम्हें कोमल बना देता है —भीतर से भी, और बाहर से भी। 🤍
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प्रेम स्वतः ही तुम्हें लचीला बना देगा प्रेम में कठोरता संभव ही नहीं
प्रेम स्वतः ही तुम्हें लचीला बना देगा,
प्रेम में कठोरता संभव ही नहीं... 🤍❤️
ना तलवारों की ज़रूरत पड़ती है,
ना शब्दों की धार चाहिए,
जहाँ प्रेम होता है,
वहाँ बस एक नज़र काफी है।
प्रेम में न लड़ाइयाँ होती हैं,
न जीतने की होड़…
वहाँ तो दो लोग
खुद को हार कर
एक-दूसरे में ढल जाते हैं।
वो धीरे-धीरे
तुम्हारी आत्मा में उतरता है,
तुम्हें मुलायम बना देता है,
इतना कि
अब किसी की पीड़ा भी
तुमसे देखी नहीं जाती।
प्रेम झुकाता है…
मगर नीचा नहीं दिखाता,
प्रेम मिटाता है…
मगर खोने नहीं देता।
क्योंकि जहाँ प्रेम है —
वहाँ सख़्ती की कोई जगह नहीं…
बस एक कोमल तपस्विता होती है। 🤍
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