बहु चाहिए, पापा की परी नहीं
रविवार का दिन था। आज सचिन और सुजॉय दोनों की ही छुट्टी थी। दोनों अभी-अभी हॉल की सफाई कर वही सोफे पर पसर गए थे। घर में ले देकर तीन जीव ही तो रहते थे सचिन, उसकी पत्नी संध्या और शादी लायक बेटा सुजॉय जो गवरमेंट जाॅब में था। एक बेटी भी है खनक जिसकी चार महीने पहले शादी हो चुकी है। फिलहाल वो अपने ससुराल में हैं।
कामवाली छुट्टी पर है इसलिए सचिन और सुजॉय संध्या की मदद कर रहे हैं। संध्या रसोई में काम में लगी है इसलिए सचिन और सुजॉय ने मिलकर साफ-सफाई का जिम्मा उठा लिया।
इधर संध्या रसोई में फटाफट नाश्ता तैयार कर रही थी। सुबह के 10:00 बज चुके थे। नाश्ता तैयार कर प्लेट में लगाकर संध्या बाहर लेकर आई। अभी तीनों मिलकर नाश्ता करने ही बैठे थे कि इतने में बेटी खनक अकेली ही घर पर आ गई। उसे इस तरह अकेले देख कर जहां सचिन बहुत खुश हुआ वही संध्या का दिमाग ठनक गया,
" अरे बेटा तू इस समय अचानक? अकेली ही आई है, अक्षय जी नहीं आए?"
संध्या जी ने पूछा तो खनक बिफर पड़ी,
"क्या मम्मी मैं अपने घर नहीं आ सकती? ये मेरा घर नहीं है क्या? और जरूरी है क्या मैं किसी के साथ ही आऊँ, अकेली भी तो आ सकती हूं"
उसकी बात सुनकर सचिन ने कहा,
" क्या संध्या तुम भी? बेटी आई उसकी तो खुशी हो नहीं रही है उल्टे दस सवाल पूछे जा रही हो। जरा फटाफट से बेटी के लिए भी नाश्ता लेकर आओ"
फिर खनक से
" आ बेटा, बैठ तू मेरे पास। आज हम मिलकर नाश्ता करेंगे"
सचिन की बात सुनकर संध्या रसोई में नाश्ता लेने गई। नाश्ते की प्लेट लगाते लगाते उसके दिमाग में कई सवाल चल रहे थे। बेटी की शादी चार महीने पहले ही हुई है, अब तक कितनी बार तो घर पर आ चुकी है। पर इस पिता के दिमाग में तो यह चीज बैठती ही नहीं। हर बार किसी ना किसी छोटी मोटी बात पर लड़ झगड़ कर आ जाती है और सचिन हर बार अपनी बेटी का सपोर्ट करता है।
सचिन शुरू से ही खनक और सुजॉय में से खनक को बहुत ज्यादा चाहता था। और खनक, वो तो बिल्कुल पापा की परी बनी बैठी है। जिस चीज के लिए कह दे सचिन उसकी हर इच्छा पूरी करता। एक बार सुजॉय के लिए कोई चीज आए ना आए लेकिन खनक के लिए तो कैसे भी करके आएगी जरूर।
माना कि सचिन अपनी बेटी से बहुत प्यार करता है लेकिन इसका मतलब यह थोड़ी ना है कि उसके गलत में भी उसका साथ दें। जब शादी होकर ससुराल गई थी तो उसके ठीक सात दिन बाद ही नाराज होकर आ गई थी और बहाना क्या बनाया था कि दहेज में दिया सोफा इन लोगों ने मेरे कमरे में नहीं रखा।
और सचिन इतने महान पिता कि अपनी ही बेटी के पक्ष में जाकर उसके ससुराल वालों से लड़ने को तैयार हो गए। इतना भी दिमाग नहीं लगाया कि खनक के कमरे में जगह बची ही कहाँ है?
कोई और होता तो रिश्ता तो इतनी छोटी सी बात पर ही टूटने की बात आ जाती। वो तो खनक के ससुराल वाले इतने अच्छे थे कि उन लोगों ने खनक का कमरा ही बदल दिया, जिसमें जगह भी अच्छी थी और सोफे उसमें रखने में आ गए। कितनी शर्मिंदगी हुई थी संध्या को कि खनक ने अपनी नई नई शादी में छोटी सी बात के लिए बतंगड़ बना दिया।
हर बार कोई ना कोई बहाना करके घर आ जाती। कभी कहती कि घर का सारा काम मुझसे करवाते हैं तो कभी कहती घर में नौकर नहीं है। कभी कहती कि विक एंड पर अक्षय घुमाने नहीं लेकर जाता तो कभी कहती कि मेरे कमरे में टीवी नहीं लगा रखा। कभी कहती कि ननद पर बेवजह खर्चा करते हैं। कभी क्या बहाना तो कभी क्या बहाना?
जब संध्या ने अकेले में अक्षय से बात की तो अक्षय ने कहा,
" मम्मी जी मुझसे तो खनक कहती है कि मुझे पापा की याद आ रही है उनसे मिलना है इसलिए मैं लेकर आ जाता हूं और यहां आकर यह इस तरह की बातें करती है। इसे जो भी समस्या है ये हमें सीधा सीधा बोले ना तो उसका कोई सॉल्यूशन भी निकले।और सबसे बड़ी बात है कि कोई चीज उसके मन मुताबिक नहीं होती तो बस उसी चीज का बतंगड़ बना देती है। कुछ समझदारी भी तो दिखाएं। बस ये यहां आकर बोलती है और पापा जी हम से लड़ने को तैयार हो जाते हैं।
कितनी शर्मिंदगी होती है मम्मी पापा को और मुझे, आखिर मैं भी इकलौता बेटा हूं। मेरे माता पिता को मुझसे भी तो उम्मीद होगी। इकलौती बहन है वो भी मुझसे छोटी। अगर अपनी ख़ुशी से उस पर थोड़ा सा खर्च कर देता हूं तो उसमें बुरा मान जाती है जबकि बहन तो मुझसे कुछ मांग ही नहीं रही। मेरी शादी के लिए मेरे माता पिता ने कर्जा लिया था। तो क्या उस कर्ज को चुकाने की जिम्मेदारी मेरी नहीं थी लेकिन वो ये समझती नहीं"
तब भी कितनी शर्मिंदगी महसूस हुई थी संध्या को। कई बार खनक को समझाने की कोशिश की पर वो है कि अपने पापा की शह में समझना नहीं चाहती। और उसके पापा, उनके लिए तो अपनी परी का प्यार हटता ही नहीं। सारी दुनिया में बस उन्हें उनकी बेटी ही दीन दुखी नजर आती है और उसके ससुराल वाले जल्लाद।
ऐसे तो उसका घर बसने से रहा। लेकिन हर बार अक्षय(दामाद) साथ होता है, पर आज ये अकेली? जरूर कोई ना कोई बात हुई होगी।
सोचते सोचते ही संध्या ने प्लेट लगाई और नाश्ता खनक को देने के बाद वही बैठ कर नाश्ता करने लगी। साथ ही साथ बेटी के चेहरे के हाव-भाव को पढ़ने की कोशिश करने लगी। लेकिन इतने में खनक बोली,
" पापा आपको मेरी फ्रेंड अदिति याद है जो मेरे साथ पढ़ती थी"
" हां हां याद है। क्यों क्या हुआ?"
" उसकी मम्मी का कॉल आया था कल मुझे। वो अदिति के लिए सुजॉय का रिश्ता चाहते हैं। मैंने तो जब से उनसे बात की है तब से मुझे यहां आने की लग गई थी। अक्षय तो शाम के लिए बोल रहे थे पर मैं तो अकेली ही चली गई"
उसकी बात सुनकर संध्या को थोड़ी तसल्ली हुई और मन ही मन खुशी हुई कि हे भगवान चलो कोई बड़ी बात नहीं है।
" अरे पर वो तो बहुत अमीर लोग हैं। उन्हें तो एक से बढ़कर एक रिश्ते मिल जाएंगे। फिर वो यहां शादी क्यों करना चाहते हो?" संध्या ने थोड़ा शक जताते हुए कहा।
" क्या मम्मा आप भी? अमीर है तो क्या हुआ?सुजॉय में क्या कमी है? अच्छी खासी गवर्नमेंट जॉब में है, इसके लिए तो एक से बढ़कर एक रिश्ते आएंगे ही ना। अच्छा खासा दहेज देने को तैयार है। और आपको पता है उसके पापा उसकी हर ख्वाहिश पूरी करते हैं। वो जिस चीज के लिए कह देती है, वो शाम तक उसके हाथों में होती है। उसके पापा ने बिल्कुल उसको परी की तरह पाला है जैसे मेरे पापा ने मुझे पाला हैं" खनक अपने पापा के गले में हाथ डालते हुए बोली।
" मुझे किसी पापा की परी को अपने घर की बहू नहीं बनाना" संध्या जी ने कहा तो सब हैरान हो उनकी तरफ देखने लगे।
" क्यों मम्मा? इतना अच्छा रिश्ता तो है क्यों मना कर रहे हो? कोई बेटी के पापा उसे इतना प्यार करते तो इसमें गलत क्या है" खनक ने तुनकते हुए कहा।
" देख बेटा, प्यार करना अच्छी बात है पर अंधा प्यार करना गलत है। मुझे ऐसी कोई आफत अपने घर में नहीं लानी जिसके कारण कल को मुझे शर्मिंदा होकर सिर झुका कर बैठना पड़े"
" आप कहना क्या चाहती हो?"
" मुझे तेरे सास ससुर और तेरे पति का चेहरा अच्छे से याद है जब उनके घर में एक पापा अपनी परी के लिए लड़ने के लिए पहुंचते हैं, बिना यह सोचे कि उनकी परी भी गलत है। मुझे तेरी उस ननद का चेहरा याद है जो उम्र में तुझसे आठ साल छोटी है। स्कूल में पढ़ती है लेकिन उसका भाई उस पर थोड़ा सा खर्चा कर देता है तो उसकी पत्नी बुरा मान कर अपने मायके आकर बैठ जाती है। और बजाय अपनी परी को ये बात समझाने के उसके पापा उसके पति की हालत टाइट कर देते हैं।
मुझे तेरे उस पति का चेहरा बहुत अच्छे से याद है जिसकी पत्नी उसकी पत्नी ना होकर अभी तक अपने पापा की परी बनी हुई है। जब उसके पापा उसके पति को दस बातें सुना रहे होते हैं तो उसकी पत्नी का थोड़ा सा भी स्वाभिमान नहीं जागता"
संध्या की बात सुनकर सचिन बोला,
" क्या बकवास कर रही हो तुम? तुम मेरी बेटी पर बैठे बैठे कटाक्ष कर रही हो "
" सच हमेशा कटाक्ष ही लगता है। यही बात तो आप हर बार कहते हो अपनी बेटी के ससुराल वालों से"
इससे पहले कि सचिन या खनक कुछ कहते, सुजॉय ने कहा
"हां, मुझे भी पापा की परी नही चाहिए। मुझे ऐसी पत्नी चाहिए जो मेरे कदम से कदम मिलाकर चल सके। मेरे घर को अपना घर समझ सके। मेरे मम्मी पापा को अपने मम्मी पापा समझ सके। इस तरह की बार-बार की टेंशन तो मुझे भी नहीं चाहिए"
" एक तो मेरी बेटी तुम्हारे लिए रिश्ता ढूंढ कर लाई हैं और ऊपर से तुम"
" जाने दीजिए पापा, सही तो कह रहे हैं मम्मी और सुजाॅय। मैंने ही आपके प्यार और कुछ जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल किया है। कभी अपने ससुराल वालों को अपना समझा ही नहीं। पर मम्मी प्लीज मुझे माफ कर दो। मैं कोशिश करूंगी बदलने की"
संध्या ने खनक की बात सुनकर उसे गले लगा लिया।
दोस्तों, सबसे बड़ा सत्य है। 'मां के श्रवण कुमार' और 'पापा की परी' सुनने में बड़े अच्छे लगते हैं लेकिन इन अंध भक्तों से तो भगवान ही बचाए। क्योंकि इनकी अपनी कोई सोच और समझ नहीं होती। जब भी अपने बच्चों के लिए रिश्ता देखने जाए यह कंफर्म कर ले कि कहीं आप का पाला इन लोगों से तो नहीं पड़ रहा।
चलो कहानी में तो पापा की परी को समझ में आ गया, पर सच्चाई बहुत अलग होती है। आपका क्या ख्याल है कमेंट करके जरूर बताइएगा।
मौलिक व स्वरचित
लक्ष्मी कुमावत
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