" धब्बा "
" जब तक आप दस लाख का इंतज़ाम नही करते फेरे नही होंगे !" जयमाला के बाद लड़के का पिता बेहयाई से बोला।
" पर इतना पैसा अचानक कहाँ से आएगा आप कुछ तो सोचिये !" लड़की का पिता लाचारी से बोला।
" देखिये हमें कुछ नही सोचना जो सोचना है आप सोचिये लड़की ब्याहनी है या नही !" लड़के का पिता फिर बोला । लड़की का पिता कुछ बोलता उससे पहले वहाँ एक आवाज़ गूंजी
" नही !"
सबने घूम कर देखा दुल्हन खड़ी थी वहाँ ।
" बेटा तू यहाँ क्यो आई और ये क्या बोल रही है ?" लड़की की माँ बोली।
" माँ मैं इनके बेटे से शादी नही करना चाहती इसलिए आप इन्हे फूटी कौड़ी नही देंगे !" लड़की गुस्से मे बोली।
" नही बेटा ऐसा नही बोलते मंडप से बारात लौट जाने का धब्बा लग गया तो कौन शादी करेगा तुमसे हम पैसो का इंतज़ाम करते है तुम जाओ यहाँ से !" माँ बोली।
" नही माँ एक पैसा नही देना इन्हे और कैसा धब्बा लगेगा बारात लौट नही रही हम लौटा रहे है इन दहेज़ के लालचियों से शादी करके वैसे भी कौन सा मैं खुश रहूंगी और रही धब्बा लगने की बात वो तो इनके माथे पर भी लगेगा ना क्योकि दहेज़ माँगने के जुल्म मे सजा तो इन्हे मिलेगी !" लड़की बोली।
" क्या सजा !!" लड़के के इतना बोलते ही वहाँ कुछ पुलिस वाले आये और लड़के के पिता भाई और उसे धर दबोचा।
अगले दिन के अखबार मे लड़की की बड़ी सी फोटो लगी थी और पंक्तियाँ छपी थी " एक साहसी लड़की ने दहेज़ के लालचियों को पहुँचाया जेल वही लड़के वालों की फोटो के साथ छपा था " दहेज़ के रूप मे भीख मांगने वाले भिखारी "
अब दोनो पक्षो को समझ आ गया था कि धब्बा किसके माथे लगा है ।
संगीता अग्रवाल ( स्वरचित )