IAS राजा हमारे देश में सिविल सर्वेंट बनने का ऐसा महाभियान चल पड़ा है कि बच्चे पहले से ही सिलेबस रटने लगते हैं जैसे खेत में गेहूं नहीं, लॉटरी के टिकट बो रहे हों। डॉक्टर बन के किडनी ऑपरेट करने की बजाय इन्हें लगता है कि कुर्सी पर बैठकर न जाने कितने किडनी और लीवर उखाड़ लेंगे, बिना चीरे और बिना टांके के। ये इंजीनियरिंग कॉलेजों के होनहार, जिन्होंने पढ़ाई में लोहे के चने चबाए हैं, अचानक किताबें फेंककर यूपीएससी का रथ पकड़ लेते हैं। आखिर काहे नहीं पकड़े, भई! इस राह पर चलने से समाज का हुक्मरान बनने का सपना जो पूरा होता है।
बात सीधी है, इंजीनियर बनकर या डॉक्टर बनकर भले करोड़ों कमा लो, लेकिन वो जो आंखों में चमक और सीने में दम होने का एहसास है, वो IAS बनने पर ही आता है। किसी नेता का कंधा दबाकर, किसी माफिया का सलाम ठोंककर, मुफ्त की होटल की चाय पीते हुए जो सुकून मिलता है, वो कोई प्राइवेट जॉब में थोड़ी न मिलता है। अपने पड़ोसियों को ऐसे धकियाओगे जैसे जमीन उनकी न हो, आपकी पुश्तैनी विरासत हो! और तो और, इलाके के सारे होटल और रिसॉर्ट आपके, हर अवैध खनन के धंधे में हिस्सेदारी, और गाड़ियों का काफिला आपके नाम पर दौड़ेगा। सब में थोड़ा-थोड़ा हाथ मारते जाओ और खुद को आधुनिक युग का महाराजा समझो।
सिविल सेवा में आने का यही असली फायदा है—किसी को लूटो, किसी को फंसाओ, किसी को दबाओ। हां, अब आप सोचिए कि ये कोई लोक सेवा है! अरे भोलेपन की भी हद होती है, ये आज के जमाने के सरकारी राजा हैं। राजा बड़े फैसले नहीं लेते, बड़ी बंदरबांट करते हैं। कोई कलेक्टर हो या कमिश्नर, या जो भी आला अफसर हो, उनकी सोच यही रहती है कि अपने परिवार और आने वाली सात पीढ़ियों के लिए संपत्ति जुटाई जाए, ताकि सदा सुखी रहें।
तो जनाब, ये सब सरकारी खिदमत की नहीं, बल्कि नवाबी की तैयारी है। ऐसे सिविल सर्वेंट आज के युग में सरकार के नाम पर अपनी सल्तनत चला रहे हैं। जब जनता को लगे कि यही उनके असली सेवक हैं, तो समझिए, जनता ने बस अंधेरे में काठ की हांडी उबाल ली है। अपने ख्यालातों से छलांग मारिए, क्योंकि ये सेवा कम और सफेदपोश ठगी का नया मॉडल है!
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