सुनो, मर्दों —
जब एक लड़का ऐसी परवरिश में बड़ा होता है जहाँ माँ मौजूद होती है और पिता गैरहाज़िर,
तो वह माँ के संघर्षों को बहुत गहराई से महसूस करता है।
उसे माँ की कहानी की हर परत समझ में आती है, लेकिन पिता की कहानी का एक सिरा भी नहीं।
माँ बन जाती है हीरो।
पिता बन जाता है जीरो।
माँ एक विजेता।
पिता एक असफल इंसान।
वह लड़का ठान लेता है कि वह माँ की हर तरह से मदद करेगा, और कभी भी अपने पिता जैसा नहीं बनेगा।
यहीं से एक लड़के को "एम्पैथ" यानी अति-संवेदनशील इंसान में बदला जाता है—
एक ऐसा शख्स जो महिला नार्सिसिस्ट्स (स्वार्थी और चालाक औरतों) के लिए सबसे आसान शिकार बन जाता है।
वो लड़का बड़ा होता है महिलाओं के प्रति बहुत समझ रखने वाला।
माँ के त्याग को सराहने वाला।
पिता के प्रति गहरी नफरत रखने वाला।
पिता तो जैसे शैतान था—
निर्दयी, औरतबाज़, शराबी और निकम्मा।
लेकिन एक सवाल वो कभी नहीं पूछता:
आखिर माँ ने ऐसे आदमी को चुना ही क्यों?
क्यों नहीं माँ उस फैसले की ज़िम्मेदारी लेती कि उसने अपने बेटे के लिए ऐसा पिता चुना?
यहीं से वो धारणा बनती है कि 'औरत कभी ग़लत नहीं होती'।
"Happy wife, happy life" जैसे जुमले भी इसी सोच से निकले हैं।
असल में होना चाहिए —
"Happy spouse, happy house."
यानि पति-पत्नी दोनों खुश हों, तभी घर चले।
वो लड़का ठान लेता है कि वो महिलाओं से सवाल नहीं करेगा।
वो बनता है अपने पिता के बिलकुल उल्टा:
मौजूद, केयरिंग, और हर हाल में एडजस्ट करने वाला।
जब वो डेट करना शुरू करता है, उसकी ये आदतें बुरी तरह सामने आती हैं —
कोई भी लिमिट नहीं होती।
हर चीज़ को माफ कर देता है।
ना नहीं कह सकता।
और औरतें ये जान जाती हैं — इससे कुछ भी करवाया जा सकता है।
वो मेहनती भी होता है और जुगाड़ू भी।
तो उसे कौन सी औरतें आकर्षित करती हैं?
मतलबी औरतें, लालची और इस्तेमाल करने वाली।
अगर कोई अच्छी औरत भी उसे डेट करने की कोशिश करे,
तो वो परेशान हो जाती है उसकी बाउंड्री-रहित आदतों से और पीछे हट जाती है।
वो आदमी ना तो चरित्रहीन होता है, ना ही लफंगा।
वो बस बहुत समझने वाला होता है —
कभी-कभी बहुत आध्यात्मिक भी।
लेकिन अंदर से हमेशा तनाव में होता है —
क्योंकि कई औरतें उसकी ऊर्जा और पैसे को खींच रही होती हैं।
कुछ औरतें उससे बच्चा करवा लेती हैं ताकि हमेशा के लिए फाइनेंशियल सपोर्ट पक्का कर सकें।
उसकी माँ भी उसे "घर का पति" बना लेती है — भावनात्मक सहारा, अगर दूसरा कोई बेटा कामयाब नहीं हुआ हो।
आख़िरकार क्या होता है इस आदमी के साथ?
वो शादी करता है एक खतरनाक, चालाक और आत्मकेंद्रित औरत से।
अगर किस्मत से कोई "फरिश्ता" उसे सच दिखा दे —
तो शायद वो थेरेपी की ओर भागे और खुद पर काम करे।
यही उसकी जान बचा सकता है।
लेकिन अधिकतर समय उसे लगता है कि "मेरे साथ कोई दिक्कत नहीं है।"
वो अपने बच्चों से बेहद प्यार करता है।
वो हर वो चीज़ बनना चाहता है जो उसका पिता नहीं था।
वो छोड़कर नहीं जाना चाहता, जैसे उसका बाप चला गया।
और यही सेट करता है स्टेज —
एक बेहद सहनशील इंसान और एक खतरनाक नार्सिसिस्ट के टकराव की।
अंत में, वो आदमी टूट जाता है —
तनाव से जुड़ी बीमारियों से जैसे स्ट्रोक, दिल की बीमारी, हाई ब्लड प्रेशर या फिर शराब।
लोग उसके बारे में कहते हैं:
"बहुत भला इंसान था, लेकिन एक ज़हरीली औरत ने उसे बर्बाद कर दिया।"
पर उन्हें असली कहानी कभी नहीं पता चलती।
एकमात्र हल है:
एक आदमी को अपने घर से निकलने और अपनी शादी शुरू करने के बीच खुद पर काम करना होगा।
सोचो अगर कोई खिलाड़ी चोटिल होकर भी खेलता रहे,
बजाय कि पहले अपना इलाज कराए —
तो क्या होता है?
चोट बढ़ जाती है, और वो खेल भी नहीं पाता।
ठीक यही कर रहे हो तुम जब बिना हील हुए डेटिंग कर रहे हो।
जो दर्द और असंतुलन तुम्हारे बचपन से आया है,
अगर उसे थेरेपी में ठीक नहीं किया,
तो असल ज़िंदगी में वो और बड़ा नुक़सान करेगा।
दोस्तों,
जिसे तुम ठीक नहीं करोगे,
वो तुम्हें धीरे-धीरे मार देगा।
थेरेपी महंगी लग सकती है,
लेकिन उससे भी ज्यादा महंगी है वो ज़िंदगी जो तुम बर्बाद कर रहे हो।
क्या ऐसा नहीं लगता तुम्हें?
The one you don't fix will destroy you