एक शहर में प्रतिवर्ष माता पिता अपने पुत्र को गर्मी की छुट्टियों में उसके दादा दादी के घर ले जाते, 10-20 दिन सब वहीं रहते , और फिर लौट आते । ऐसा प्रतिवर्ष चलता रहा । बालक थोड़ा बड़ा हो गया । एक दिन उसने अपने माता पिता से कहा कि अब मैं अकेला भी दादी के घर जा सकता हूंँ तो आप मुझे अकेले को दादी के घर जाने दो । माता पिता पहले तो राजी नहीं हुए । परंतु बालक ने जब जोर दिया तो उसको सारी सावधानी समझाते हुए अनुमति दे दी । जाने का दिन आया । पिता बालक को छोड़ने स्टेशन पर गए । ट्रेन में उसको उसकी सीट पर बिठाया । फिर बाहर आकर खिड़की में से उससे बात की । उसको सारी सावधानियांँ फिर से समझाईं । बालक ने कहा कि मुझे सब याद है । आप चिंता मत करो । ट्रेन को सिग्नल मिला । व्हीसिल लगी । तब पिता ने एक लिफाफा पुत्र को दिया और कहा कि बेटा अगर रास्ते में तुझे डर लगे तो यह लिफाफा खोल कर इसमें जो लिखा उसको पढ़ना । बालक ने पत्र जेब में रख लिया । पिता ने हाथ हिलाकर विदा किया । ट्रेन चलती रही । हर स्टेशन पर नए लोग आते रहे , पुराने उतरते रहे । सबके साथ कोई न कोई था । अब बालक को अकेलापन लगने लगा । अगले स्टेशन पर ट्रेन में ऐसी शख्सियत आई जिसका चेहरा बहुत भयानक था। बालक पहली बार बिना माता-पिता के , बिना किसी सहयोगी के , यात्रा कर रहा था । उसने अपनी आंँखें बंद कर सोने का प्रयास किया परंतु बार-बार वह भयानक चेहरा उसकी आंँखों के सामने घूमने लगा । बालक भयभीत हो गया । रुआँसा हो गया । तब उसको पिता की चिट्ठी याद आई। उसने जेब में हाथ डाला । हाथ कांँप रहा था । पत्र निकाला । लिफाफा खोला और पढ़ा । पिता ने लिखा था तू डरना मत । मैं पास वाले कंपार्टमेंट में ही हूँ , इसी गाड़ी में बैठा हूंँ । बालक का चेहरा खिल उठा । सब डर काफूर हो गया । जीवन भी ऐसा ही है । जब भगवान ने हमको इस दुनिया में भेजा उस समय उन्होंने हमको भी एक पत्र दिया है , जिसमें लिखा है "उदास मत होना , मैं हर पल, हर क्षण , हर जगह तुम्हारे साथ हूंँ ।" "पूरी यात्रा तुम्हारे साथ करता हूंँ । केवल तुम मुझे स्मरण रखते रहो । सच्चे मन से याद करना , मैं एक पल में आ जाऊंँगा ।" इसलिए चिंता नहीं करना । घबराना नहीं । हताश नहीं होना । चिंता करने से मानसिक और शारीरिक दोनों स्वास्थ्य प्रभावित होते हैं... परमात्मा पर , प्रभु पर , अपने इष्ट पर , हर क्षण विश्वास रखें । वह हमेशा हमारे साथ हैं हमारी पूरी यात्रा के दौरान । अन्तिम श्वास तक । बस इसी एक एहसास को ही कायम रखने का प्रयास करते रहना है सब कुछ उस परमात्मा पर छोड़ दें जिसकी मर्ज़ी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता
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