अभी एक साल भी नहीं हुआ था दोनों की शादी को कि दोनों में झगड़ा हो गया किसी बात पर ...
जरा सी अनबन हुई और दोनों के बीच बातचीत बंद हो गई ...वैसे दोनों बराबर पढ़े - लिखे , दोनो अपनी नौकरी में व्यस्त तो दोनों का इगो भी बराबर ...
वही पहले मैं क्यों बोलूं.... मैं क्यों झुकूं....
तीन दिन हो गए थे पर दोनों के बीच बातचीत बिल्कुल बंद थी ...
कल सुधा ने ब्रेकफास्ट में पोहे बनाये, पोहे में मिर्च बहुत ज्यादा हो गई सुधा ने चखा नही तो उसे पता भी नहीं चला...और मोहन ने भी नाराजगी की वजह से बिना कुछ कहे पूरा नाश्ता किया पर एक शब्द नहीं बोला, लेकिन अधिक तीखे की वजह से सर्दी में भी वह पसीने से भीग गया बाद में जब सुधा ने ब्रेकफास्ट किया तब उसे अपनी गलती का अहसास हुआ....
एक बार उसे लगा कि उसे मोहन से सॉरी बोलना चाहिए.. लेकिन फिर उसे अपनी फ्रेंड की सीख याद आ गई कि अगर तुम पहले झुकी तो फिर हमेशा तुम्हें ही झुकना पड़ेगा और वह चुप रह गई हालांकि उसे अंदर ही अंदर अपराध बोध हो रहा था।
अगले दिन सन्डे था तो मोहन की नींद देर से खुली घड़ी देखी तो नौ बज गए थे , उसने सुधा की साइड देखा, वह अभी तक सो रही थी , वह तो रोज जल्दी उठकर योगा करती है.... मोहन ने सोचा..
खैर... मुझे क्या....
उसने किचन में जाकर अपने लिए नींबू पानी बनाया और न्यूजपेपर लेकर बैठ गया
दस बजे तक जब सुधा नहीं जगी तब मोहन को चिंता हुई ...
कुछ हिचकते हुए वह उसके पास गया...
सुधा ... दस बज गए हैं ...
अब तो जगो ...' कोई जवाब नहीं.... दो - तीन बार बुलाने पर भी जब कोई जवाब नहीं मिला तब वह परेशान हो गया। उसने सुधा का ब्लैंकेट हटा कर उसके चेहरे पर थपथपाया..... उसे तो बुखार था ।
वह जल्दी से अदरक की चाय बना लाया सुधा को अपने हाथों का सहारा देकर बिठाया और पीठ के पीछे तकिया लगा दिया .....
उसे चाय दी
'कोई दिक्कत तो नहीं कप पकड़ने में , क्या मैं पिला दूं ...
मोहन के कहने के अंदाज में कितना प्यार था यह सुधा फीवर में भी महसूस कर रही थी...
'मैं पी लूंगी ...' उसने कहा..
मोहन भी बेड पर ही बैठ कर चाय पीने लगा
'इसके बाद तुम आराम करो, मैं मेडिसिन लेकर आता हूं।'
सुधा चाय पीते-पीते भी उसे ही देख रही थी .....
कितना परेशान लग रहा था , कितनी परवाह है मोहन को मेरी , कहीं से भी नहीं लग रहा कि तीन दिन से हम एक- दूसरे से बात भी नहीं कर रहे और मैं इसे छोड़कर मायके जाने की सोच रही थी... कितनी गलत थी मैं...
'क्या हुआ ..... मोहन ने उसे परेशान देख पूछा , सिर में ज्यादा दर्द तो नहीं हो रहा ....
आओ मैं सहला दूं...
' नहीं मोहन...
मैं ठीक हूं ... एक बात पूछूं...
'हां बिल्कुल...' मोहन ने सहज भाव से कहा
इतने दिन से मैं तुमसे बात भी नहीं कर रही थी और उस दिन ब्रेकफास्ट में मिर्च भी बहुत ज्यादा थी तुम बहुत परेशान हुए फिर भी तुम मेरी इतनी केयर कर रहे हो ...
मेरे लिए इतना परेशान हो रहे हो, क्यों...
'हां .... परेशान तो मैं बहुत हूं , तुम्हारी तबियत जो ठीक नहीं और रही मेरे - तुम्हारे झगड़े की बात ... तो जब जिंदगी भर साथ रहना ही है तो कभी -कभी बहस भी होगी , झगड़े भी होंगे ,रूठना -मनाना भी होगा... दो बर्तन जहां हों वहां कुछ खटखट तो होगी ही...
समझी कि नहीं मेरी जीवनसंगिनी....
'सही कह रहे हो...' कहते हुए
सुधा मोहन के गले लग गई...
मन ही मन उसने अपने- आप से वादा किया.. अब कभी मेरे और मोहन के बीच इगो नहीं आने दूंगी...