"पूजा....
सुबह सुबह मोहनबाबू का मोबाइल फोन बजा देखा तो डिस्प्ले पर दीपक का नाम आ रहा था
दीपक उसके गांव के दोस्त अशोक का बेटा
जिनसे सालों से सम्पर्क टूटा हुआ था आज अचानक उसके बेटे का फोन आना गांव के बीते हुए दिन पलभर में स्मरणीय हो उठे दिल खुशी से झूम उठा
हैलो ....
चाचाजी प्रणाम ....आज शाम को आपको सपरिवार आना है
प्रणाम बेटा प्रणाम हमलोग जरूर आएँगे पर आज मौका क्या है
चाचा जी आपके आशीर्वाद से एक छोटा सा घर बनाया है शाम को उसी उपलक्ष्य में पूजा है मम्मी पापा भी आपको याद कर रहे है सुमित भैया और नेहा भाभी को भी लेकर आइएगा में एड्रेस आपको व्हाट्सएप कर रहा हूं
ठीक है हम जरूर आएंगे बेटा कहकर मोहनबाबू ने अपनी पत्नी सुधा और बेटे सुमित को बताया
शाम को वह सपरिवार लगभग दो घंटे का सफर तय करके वहां पहुंच गए उस आलीशान बंगले की शानोशौकत तो देखने लायक थी
मोहनबाबू ये देखकर बड़े खुश हुए गांव में खेती-बाड़ी करते हुए उन्हीं की तरह अशोक ने भी दीपक को बड़े कठिन हालातों में पढ़ाया लिखाया था...
आज उनका ये आलीशन घर देख कर वो सब बहुत प्रसन्न थे अंदर पहुंचने पर दीपक और उसकी पत्नी मेघा ने उनका स्वागत किया मोहनबाबू और उनकी पत्नी सुधा देख रहे थे की कैसे दौड़ दौड़ कर दीपक और मेघा मेहमानों का स्वागत कर रहे थे पर उनकी निगाहें तो बस अपने दोस्त अशोक को तलाश रही थी मगर दीपक और मेघा को व्यस्त देखकर वह चुप थे आखिर स्वयं ही पूरे घर के निरीक्षण के लिए निकले
बंगले मे हर चीज़ एकदम तराशी हुई थी हर कोने से वैभव झलक रहा था अचानक उनकी नजर विशाल बंगले के एक कोने के कमरे में गई जहां उनका दोस्त अशोक पत्नी के साथ गुमसुम बैठा हुआ था मोहनबाबू दौड़ कर अशोक के गले लग गए थे पर अपनी उदासी छिपा नहीं सके थे दिखावे के लिए हंसकर बोले ...यार मोहन, भतीजे का घर कैसा लगा ... खाना ठीक से खाया
यार अशोक घर तो बहुत आलीशान है पर तुम और भाभी यहां क्यों बैठे हो...
क्या दीपक और मेघा तुम्हारे बिना कैसे खा लेते है
वो दोनों एक-दूसरे की शक्ल देखकर चुप रहे
मोहनबाबू ने देखा सीता भाभी आँखें पोंछ रही थी
तभी दीपक आया और बोला अरे चाचाजी चाची जी आप दोनों यहां है चलिए आप भी खाना खा लीजिए
सुमित भैया और नेहा भाभी कह रहे हैं आपके साथ ही खाएंगे
मोहनबाबू धीरे से बोले ... दीपक बेटा ...
जरूर खाएंगे पर तुमने गृहप्रवेश की पूजा में भगवान को भोग नहीं लगवाया
तभी पीछे से मेघा बोल पड़ी ... चाचा जी लगता है आपने हमारा पूजाघर नहीं देखा पहली थाली तो भगवान के आगे ही रखी है
मोहनबाबू का चेहरा लाल हो गया था पर खुदपर संयम रखते हुए वह धीरे से बोले हां देखा बेटा मैंने पर उस सजे हुए पूजाघर में उन मूर्तियों के सामने सजा थाल किस काम का है...जब तुम्हारे ये असली भगवान तुम्हारे माता पिता भूखे बैठे है...
दीपक और मेघा दोनों शर्मिंदा से नजरें झुका कर खड़े हुए थे तभी पीछे से सुमित और नेहा ने आकर कहा
भैया भाभी .... हमारे भगवान तो हमारे माता-पिता है
यदि आप उन्हें भूखे रखकर पूजा-उपासना में छप्पन भोग भी लगाएंगे तो भी वह ईश्वर उसे स्वीकार नहीं करेगा
और मेरे भाई सबसे बड़ी पूजा तो माता पिता की सेवा
उन्हें प्यार और सम्मान देना साथ उनके खाना बैठकर बतियाना मेरे दोस्त वो ईश्वर तो इसी पूजा में प्रसन्न हो जाता है दीपक और मेघा दोनों शर्मिंदा से अशोक जी और सीताजी के पैरों में गिरकर माफी मांगने लगे थे
एक सुंदर रचना...
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