रात में पत्नी से लिपट के सो जाओ, और रात भर आलिंगन करो, सुबह उठो तो पत्नी खुश।
शादी की उम्र हो रही थी, मेरे लिए रिश्ते देखे जा रहे थे। मन में खुशी थी कि अब कोई ऐसा आएगा जिसे अपना हमसफर कह सकूं, जिसके साथ हर खुशी बांट सकूं। मेरी अच्छी-खासी नौकरी थी, मां-पिता का सहारा था, और इतनी कमाई थी कि पत्नी का अच्छे से ध्यान रख सकूं।
जब दिव्या से रिश्ता तय हुआ, तो ऐसा लगा जैसे जिंदगी में बहार आ गई हो। वह बहुत ही समझदार, सुलझी हुई और प्यारी लड़की थी। एक बार उसने कहा, "आपके माता-पिता मेरे भी माता-पिता होंगे।" उसकी ये बातें दिल को छू गईं। शादी के बाद कुछ महीनों तक सबकुछ एक खूबसूरत सपने जैसा था। हम साथ घूमे, बातें कीं, हंसे और जी भरकर अपने रिश्ते को जिया।
लेकिन वक्त के साथ जिम्मेदारियां बढ़ीं और छोटी-छोटी बातों में अनबन शुरू होने लगी। एक दिन दिव्या ने मुझसे पूछा, "क्या मैं साड़ी की जगह सूट पहन सकती हूं?" मैंने बिना झिझक 'हां' कह दिया। लेकिन अगली सुबह जब वह सूट पहनकर मां के सामने आई, तो मां ने नाराज़गी जताई। उन्होंने कहा, "हमारे घर में नई बहू को कम से कम छह महीने तक साड़ी पहननी चाहिए।" दिव्या ने माफी मांगी, पर मां का दिल कहीं चोट खा गया।
इसके बाद घर का माहौल धीरे-धीरे तनावपूर्ण होने लगा। दिव्या हर काम में मां से सलाह लेती, लेकिन मां कहतीं, "तुम 28 साल की हो, कुछ तो अपनी समझ से किया करो।" दिव्या को लगता था कि उसकी हर कोशिश असफल हो रही है।
मैं बीच में था — मां भी गलत नहीं थीं, और दिव्या की नीयत भी साफ थी। लेकिन इस खींचतान का असर मुझ पर साफ दिखने लगा। ऑफिस से लौटता, तो एक तरफ मां शिकायते करतीं, दूसरी ओर दिव्या उदास बैठी होती।
थक हारकर मैंने पापा से बात की। उन्होंने बड़े शांत स्वर में कहा,
"कुछ समय के लिए दूर हो जाओ। जब तुम्हारी गैरहाजिरी दोनों को महसूस होगी, तो शायद वे एक-दूसरे की अहमियत समझेंगी।"
मैंने उनकी सलाह मानी और कुछ दिनों के लिए अपने दोस्त के घर चला गया।
इन दिनों में, मां और दिव्या दोनों ने मुझे फोन करके पूछा — "कब लौटोगे?"
मैंने बस इतना कहा, "जब घर में शांति होगी, तभी वापस आऊंगा।"
एक हफ्ते बाद जब लौटा, तो घर का माहौल बदला-बदला था। मां और दिव्या अब साथ में बैठकर बातें करती थीं, मिलकर रसोई संभालतीं और घर में फिर से हंसी-ठिठोली गूंजने लगी थी।
आज हमारी शादी को पांच साल हो चुके हैं। हमारे जीवन में अब एक प्यारा बेटा है, और घर में सुख-शांति है। पापा की वह छोटी-सी सलाह हमारे रिश्ते को टूटने से बचा गई।
शादी केवल दो लोगों का नहीं, दो परिवारों का मिलन होता है। रिश्तों को निभाने के लिए प्रेम, धैर्य और समय देना ज़रूरी है।
अगर मेरी कहानी ने आपको कुछ सोचने या समझने का मौका दिया हो, तो ज़रूर बताइए। 😊
क्योंकि खुशहाल परिवार की जड़ें — विश्वास, समझ और थोड़ा-सा त्याग होती हैं। ❤️