स्त्री की स्वाभाविक कोमलता ही उसका सबसे बड़ा आकर्षण होती है। यदि कोई स्त्री आक्रामक हो जाए, तो उसका सौंदर्य और मोहकता फीकी पड़ जाती है। जब कोई स्त्री प्रेम का निवेदन करने लगे और स्वयं ही किसी पुरुष के पीछे पड़ जाए, तो पुरुष असहज महसूस करता है। वह दूर भागना चाहता है, क्योंकि स्त्री की शक्ति आक्रमण में नहीं, बल्कि उसकी कोमल प्रतीक्षा में होती है।
स्त्री का आकर्षण उसके स्वाभाविक स्त्रैण गुणों में है। वह आह्वान भी मौन रहकर करती है, उसकी उपस्थिति ही एक अदृश्य जाल की तरह पुरुष को बांध लेती है। वह अपने प्रेम से पुरुष के जीवन में ऐसे जुड़ जाती है कि उसे यह एहसास भी नहीं होता कि कब वह पूरी तरह से उसके प्रभाव में आ चुका है।
जब कोई स्त्री किसी पुरुष से प्रेम करती है, तो वह अपने आप को समर्पण की अवस्था में ले आती है। यह कोई कमजोरी नहीं, बल्कि उसकी सहज बुद्धिमानी और प्रेम की अभिव्यक्ति होती है। लोग इसे पुरुषों द्वारा स्त्री को दासी बना लेने की धारणा से जोड़ते हैं, लेकिन सच तो यह है कि स्त्री का समर्पण ही उसकी सबसे बड़ी शक्ति है।
लाओत्से का दर्शन कहता है कि स्त्री जब स्वयं को पुरुष के चरणों में रख देती है, तो वह उसके जीवन का सबसे अहम हिस्सा बन जाती है। अपनी कोमलता से वह पुरुष के हृदय पर शासन करती है, उसके निर्णयों और विचारों में बस जाती है। पुरुष उसकी छोटी-छोटी इच्छाओं को भी अपनी प्राथमिकता बना लेता है, क्योंकि उसकी कोमलता में अपार शक्ति छिपी होती है।
स्त्री कभी सीधे आदेश नहीं देती, वह बस अपने प्रेम और समर्पण से पुरुष को उसकी इच्छाओं के अनुसार ढाल लेती है। उसकी यह ताकत इतनी सूक्ष्म होती है कि पुरुष इसे समझ भी नहीं पाता, लेकिन अनजाने में वह उसी प्रेम की धारा में बह जाता है।
स्त्री का स्वाभाविक प्रेम और समर्पण ही उसे विशेष बनाता है। वह बिना बोले, बिना किसी बल प्रयोग के सब कुछ पा लेती है। उसकी कोमलता में छिपी यही शक्ति उसे जीवन में अद्वितीय और अनोखा बनाती है।
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