व्यवहार
आज सालो बाद मार्केट में स्कूल की सहेली रिया मिली। बहुत सालों बाद अपनी स्कूल की सहेली को देखा। दोस्ती गहरी तो नहीं थी पर हां स्कूल में बात होती रहती थी।
खुशी में दोनो ने भरे बाजार में एक दूसरे को गले लगाया, बहुत खुश हो गई दोनो सहेलिया आखिर सालो बाद जो मिली है।
रिया ने घर आने का आमंत्रण दिया मैने भी खुशी खुशी हां कह दिया पर जब उसने पता बताया तो शहर की पॉश कॉलोनी में बंगला न. 181
मेरा मुंह खुला का खुला रह गया। इतने अच्छे एरिया में बंगला खुद का।
उसने बोला क्या हुआ? आयेगी ना मेरे घर
मैने हां में सिर हिला दिया
चल फिर सोमवार को मिलते है सबको लेके आना।
हां हां सब आएंगे।
और फिर बाते करते करते हम पार्किंग तक पहुंचे उसने अपनी मर्सिडीस निकाली और बोली चल तुझे भी छोड़ देती हूं घर तक, मैने कहा नही नही मै भी अपनी गाडी लाई हूं।
उसने कहा ठीक है और चली गई, मै बस उसकी गाड़ी को देखती रही जब तक उसनें धूल उडाना बंद नही किया और फिर मैने अपनी स्कूटी उठाई और चल दी घर की तरफ।
घर आई और सोचने लगी परसो ही तो जाना है। बच्चों को बताया बच्चे भी खुश हो गए। पती देव ने पहले ही कह दिया तुम बच्चों के साथ जाना मुझे नही जाना मुझे तो दुकान जाना है।
खुद को और बच्चों को जैसे किसी परीक्षा के लिये तैयार कर रही थी। वहां किसी चीज को हाथ नहीं लगाना, जिद नही करना, मस्ती नही करना, प्लेट में थोडा ही खाना लेना, अच्छी तरह खाना, जवाब में बस हा या ना ही कहना।
अब तो बच्चे भी चिढ़ने लगे कि हमे नही जाना आपकी सहेली के यहां
पर मैने फिर भी दोनो बेटो को चलने के लिए तैयार कर दिया क्योंकि अकेले तो मैं भी नही जाना चाहती थी।
खैर सोमवार आ गया उसके घर जाने का जैसे जैसे समय होता जाये मेरी घबराहट बढ़ती जाये। बढ़े भी क्यो ना कहा मै दो कमरे के मकान में रहने वाली कहा वो बंगले में रहने वाली।
तैयार होकर बच्चो के साथ कैब में गई उसके घर, रास्ते में भी बच्चों की फाइनल तैयारी करवा रही थी। बच्चे भी मुंह सडा़ कर हां हां कर रहे थे।
समझाते समझाते पहुंच गई रिया के बंगले के बाहर।
जैसे ही गेट पर पहुंचीं गार्ड ने रोक दिया और एंर्टी करने को कहा सब लिखा नाम, पता, समय। फिर आगे बढ़ी और मैने डोरबैल बजाई तो उनके घर काम करने वाली सहायिका ने दरवाजा खोला ।
किससे मिलना है? जी रिया से, अच्छा आप बैठिये मै मेमसाब को बुलाती हूं। जी कहकर मै बच्चो को लेकर अंदर गई। पहली बार इतना सुंदर सजा दजा घर देखा, माफ करिये बंगला देखा।
मन मे बहुत सवाल भी थे कि क्या यहां आकर मैने कोई गलती तो नहीं कि क्योकी डर भी था कि कही वो मेरी इंसल्ट ना कर दे, अपनी अमीरी दिखा कर मेरा मजाक ना बनाये। यही सोचकर मन घबरा रहा था।
हाय रेनू कैसी हो? कब से इंतजार कर रही हूं।
ओहहहह ये है मेरे नन्हें भांजे कहकर दोनो बच्चो को गले लगा लिया।
बहुत प्यारे बच्चे है बिलकुल तेरी तरह, जीजू नही आये?
नही वो काम पर गये हैं।
अच्छा आते तो मुझे अच्छा लगता। ले पानी पी
सौरभ देखो बेटा आपके दो भाई और मासी आयी है।
जी माँ आया
वाह! माँ बोला सौरभ, आते ही पांव छुये मेरे, मै तो देखती रही
फिर सहायिका कुछ नाश्ता लाई खाने के लिये
सौरभ तुम इन दोनो को अपने कमरे मे ले जाओ और गेम्स खेलो नाश्ता वही भिजवा देती हूं कहकर रिया ने सहायिका को इशारा किया और वो नाश्ता लेके बच्चों के पीछे पीछे गई।
फिर तो मेरी और रिया की बातो का सिलसिला चला साथ साथ खाना पीना भी।
मेरे मन से सारी घबराहट निकलती गई उसके प्यार भरे व्यवहार से।
और एक बात ये भी समझ आई पहले से किसी के बारे में कोई राय नहीं बनानी चाहिये।