निकलो.. अपने बाप के घर !!
मेरी हंसती-खेलती ज़िन्दगी में विश्राम उस दिन लग गया जब मेरी शादी माँ बाप ने बड़ी जल्द बाज़ी में कर दी।
शादी तो सब ही करते हैं लेकिन गलती ये हुई कि इतनी जल्दी करनी नहीं चाहिए थी। देख सुन लेना चाहिए था|
खैर, अब जब हो ही गई तो पता चला कि पति देव बड़े ही खडूस किस्म के इंसान हैं| हमारी बहुत बहस होती। हर बात पर उनको मुझसे दिक्कत होती।
वो मुझसे कहते औरतों का बहस करना मुझे पसंद नहीं | उनको अपनी मर्यादा में रहना चाहिए। मेरे पापा आर्मी में थे।
हमेशा सिखाया की गलत बात का विरोध करो और मैं वो ही करती। वो चाहते हर वक़्त बस मैं वो करूं जो उनकी मर्ज़ी हो। मेरी कोई मर्ज़ी नहीं होती।
चाहे वो खाना पीना हो, टी. वी देखना हो, या कोई फैसला लेना हो। वो औरत को किसी ज़रूरी काम में सलाह लेने लायक भी नहीं समझते थे।
ये बात मुझे बिलकुल नागवार गुज़रती। एक दिन बहस हुई ,एक फंक्शन पे जाना था। मुझसे कहा गया कि बंद बाज़ू के ब्लाउज़ पहना करो। ये छोटी छोटी बाज़ू के नहीं। मैंने कहा मैं सलवार कमीज़ पहन लेती हूं।
वो बोले नहीं मुझे साड़ी पसंद है| मैंने कहा की साड़ी में तो और हाथ, कमर, पीठ नज़र आती है|आपको अगर दिक्कत है तो सलवार कमीज़ पहन लेती हूँ। वो चीख के बोले बहस कैसे करती हो मुझसे। जो कहा करो!!!
अब मैंने इसमें गलत क्या कहा? । चित्त भी उनकी पट भी उनकी। मैंने कहा आप कभी तो बात माना करिये। वो बोले अपनी जबान कम चलाया करो, तुम्हारे बाप का घर में होता होगा, ये यहाँ नहीं चलेगा।
मुझे गुस्सा आ गया। मैं बोली हाँ वहाँ लड़कियों को आज़ादी दी जाती है, उनकी सुनी जाती है| यहाँ की तरह नहीं| वो खीज के बोले एक काम करो फिर...अभी के अभी निकलो अपने बाप के घर.... ये मेरा घर है!!!
मुझे एक दम से धक्का सा लगा। इस दिन के लिए ही मैं सब छोड़ कर आई थी। फिर भी मैं चुप रह गई। अब जितनी बार बेमतलब की बात करते बहस होती और वह एक ही बात बोलतेे, आदत सी बना ली थी कहने कि.....
अभी निकलो अपने बाप के घर !!बहुत दुखी रहने लगी मैं|तीर की तरह चुभती उनकी बातें... हर बात पर मेरे पापा को लाना बीच में|पापा भी ना बोला जाता उनसे...तुम्हारा बाप कह कर संबोधित करते|
एक दिन रात को मैंने सामान बांधा और सच में निकल गई बाप के घर। बर्दाश्त की हद पार हो चुकी थी|अगले दिन से इनकी मुसीबतें बढ़ गईं| पहले कुछ दिन तो अपनी अकड़ में रह गए। फिर धीरे धीरे तकलीफें बढ़ने लगीं।
खाना , कपड़े, घर सबकी ज़िम्मेदारी आन पड़ी। पहले तो दोस्तों के साथ रहते थे| मिल बांट कर हो जाता था काम|
अब सबकी शादियाँ हो गई थी। ना वक़्त पे खाना मिल रहा था ना धुले कपड़े। बाई लगाई उन्होंने। जब मैं कहती थी की बाई लगा लो मुझसे इतना हो नहीं पाता तब बोलते कुछ तो कर लिया करो। लेकिन जब खुद पे पड़ी तो लगा ली। बिना देख रेख के तो बाई भी आँखों में धूल ही झोंकती है|
कपड़े भी पानी से निकाल देती। दूध पी जाती। खाना कच्चा पक्का । अच्छा सबक मिल रहा था। पड़ोस के लोग सवाल करने लगे ....भाभी जी कहाँ हैं?? कुछ हुआ क्या??बड़ी अच्छी हैं भाभी जी... जल्दी बुलवा दो |
ऑफिस में दोस्त मज़ाक उड़ाने लगे कि लगता है भाभी चली गई तुझे छोड़ कर....कितने सवालों के जवाब देते कि क्यों गई?अपनी गलती कैसे बताते?? एक दिन घंटी बजी तो ये सामने खड़े थे। पापा ने अंदर बुला कर मुझसे बात करने भेज दिया। मुझसे आकर बोले," घर चलो चारु"।
मैंने कहा ,"नहीं आपकी खवाइश थी की बाप के घर जाऊँ तो चली आई।"उन्होंने कहा सब पूछ रहे हैं ..... क्या जवाब दूँ? मैं बोली गुस्से में बोले शब्द कभी वापस नहीं आते।आप हर बार ताना देते हैं... अब जवाब भी सोच लिजिये|
आज जब आपको अपनी बेइज्जती होती नज़र आ रही है तो आ गए ???आप जैसा इंसान कभी नहीं बदलता|वो बोले.. सब मज़ाक बना रहे हैं मेरा कि बीवी छोड़ गई| मैंने कहा... आपको बीवी की कोई कद्र है भी?? बस 'मैं ' भरी है आप में|
शादी का मतलब है 'हम'|आज भी लोगों के डर से आए हैं!! अपनी गलती मान कर नहीं... आज मैं कहती हूँ आपसे... कि.... आज आप निकलो मेरे बाप के घर से .....यह मेरा घर है !पापा भी आ गए और बोले......
आप चिंता ना करें जमाई जी अब अपने बाप के घर आ गई है... खुश रहेगी|बाप अभी जिंदा है... दोस्तों हम औरतें कितनी बार सब कुछ सह जाती हैं। बिना कुछ बोले सुनती रहती हैं |पति कितना कुछ बोल जाते हैं।
पर हम बहार वालों के अागे उनकी बेइज्जती ना हो, समाज वाले हंसे ना इस डर से हम सहते जाते हैं| इस बात का फायदा उठाया जाता है कि ये ना तो कहीं जाएगी ना कुछ करेगी इसलिए जैसे मन आए वैसे बर्ताव करो....लेकिन कब तक? क्यों सुने हम कि बाप के घर जाओ...?
आपकी क्या राय है ज़रूर बताईये... क्या सुन कर अनसुना करने में समझदारी है??